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अजमेर दरगाह में मंदिर होने के 3 आधार पेश किए:हाईकोर्ट के जज की किताब का हवाला; वंशज बोले- ऐसी हरकतें देश के लिए खतरा

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अजमेर , एजेंसी। अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा किया गया है। अजमेर सिविल कोर्ट में लगाई गई याचिका को कोर्ट ने सुनने योग्य मानते हुए सुनवाई की अगली तारीख 20 दिसंबर तय की है। याचिका दायर करने वाले हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने मुख्य रूप से 3 आधार बताए हैं।

याचिकाकर्ता बोला- तथ्य साबित करते हैं कि दरगाह की जगह पहले मंदिर था उन्होंने कहा कि 2 साल की रिसर्च और रिटायर्ड जज हरबिलास शारदा की किताब में दिए गए तथ्यों के आधार पर याचिका दायर की है। किताब में इसका जिक्र है कि यहां ब्राह्मण दंपती रहते थे और दरगाह स्थल पर बने महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना करते थे। इसके अलावा कई अन्य तथ्य हैं, जो साबित करते हैं कि दरगाह से पहले यहां शिव मंदिर रहा था।

याचिकाकर्ता ने कहा- रिटायर्ड जज हरबिलास शारदा की किताब में दिए गए तथ्यों को आधार बनाकर याचिका लगाई है।

याचिकाकर्ता ने कहा- रिटायर्ड जज हरबिलास शारदा की किताब में दिए गए तथ्यों को आधार बनाकर याचिका लगाई है।

20 दिसंबर तक पक्ष रखने के लिए उपस्थित होना है कोर्ट ने अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को नोटिस जारी किया है। 20 दिसंबर को उन्हें अपना पक्ष लेकर उपस्थित होना है।

दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन की ओर से उपलब्ध कराई गई तस्वीर। यह तस्वीर किसी पेंटर ने हाथ से बनाई थी।

दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन की ओर से उपलब्ध कराई गई तस्वीर। यह तस्वीर किसी पेंटर ने हाथ से बनाई थी।

इस मामले को लेकर अजमेर दरगाह प्रमुख उत्तराधिकारी और ख्वाजा साहब के वंशज नसरुद्दीन चिश्ती ने अपना पक्ष रखा है। उन्होंने कहा- ऐसी हरकतें देश की एकता के लिए खतरा हैं। यहां तो हिंदू राजाओं ने भी अकीदत की है। दरगाह में मौजूद कटहरा जयपुर के महाराजा ने भेंट किया है। 1950 के सर्वे में स्पष्ट हो चुका है कि दरगाह में कोई हिंदू मंदिर नहीं था।

दैनिक भास्कर में पढ़िए अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर पहली बार पेश किए गए दावे की पूरी कहानी-

2 साल की रिसर्च के बाद किया दावा हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने बताया- मैंने अजमेर के लोगों को कहते सुना था और आसपास कई बार ये दावे किए गए थे कि दरगाह में पहले संकट मोचक महादेव का मंदिर था। इसकी बनावट को भी लोग संदेह की दृष्टि से देखते थे।

इसे लेकर मैंने 2 साल पहले रिसर्च शुरू की। गूगल पर देखा और कई किताबों को पढ़ने की कोशिश की। इसी दौरान मुझे अजमेर के प्रतिष्ठित जज हरबिलास शारदा की किताब अजमेर : हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव के बारे में जानकारी मिली। इसमें दावा किया गया था कि यहां कभी संकट मोचन महादेव का मंदिर हुआ करता था।

दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन के पास इस तरह की कई तस्वीरें हैं।

दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन के पास इस तरह की कई तस्वीरें हैं।

अजमेर के लोग ही कहते थे यहां हिंदू मंदिर है गुप्ता ने बताया- अजमेर आता तो लोग दबी जुबान में कहते थे कि यहां हिंदू मंदिर रहा है। दरगाह के दरवाजों और इसकी बिल्डिंग पर बनी नक्काशी हिंदू मंदिरों की याद दिलाती है।

गुप्ता कहते हैं- जब मैंने हरबिलास शारदा की किताब को पढ़ा तो उसमें साफ-साफ लिखा था कि यहां पहले ब्राह्मण दंपती रहते थे। यह दंपती सुबह चंदन से महादेव का तिलक करते थे और जलाभिषेक करते थे।

हरबिलास शारदा कोई आम व्यक्ति नहीं थे। वे जोधपुर हाईकोर्ट में सीनियर जज के रूप में रहे। वह अजमेर मेरवाड़ा (1892) के न्यायिक विभाग में भी रहे। यहां अजमेर में तो उनके नाम से हरबिलास शारदा मार्ग भी है। उन्होंने 1911 में यह किताब लिखी थी। गुप्ता ने दावा किया कि यह किताब गलत साबित नहीं हो सकती है।

हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता के दावे के तीन आधार…

दरवाजों की बनावट व नक्काशी : दरगाह में मौजूद बुलंद दरवाजे की बनावट हिंदू मंदिरों के दरवाजे की तरह है। नक्काशी को देखकर भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां पहले हिंदू मंदिर रहा होगा।

ऊपरी स्ट्रक्चर : दरगाह के ऊपरी स्ट्रक्चर देखेंगे तो यहां भी हिंदू मंदिरों के अवशेष जैसी चीजें दिखती हैं। गुम्बदों को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसी हिंदू मंदिर को तोड़कर यहां दरगाह का निर्माण करवाया गया है।

पानी और झरने : जहां-जहां शिव मंदिर हैं, वहां पानी और झरने जरूर होते हैं। यहां (अजमेर दरगाह) भी ऐसा ही है।

गुप्ता कहते हैं- मुस्लिम आक्रांता जब एक विद्यालय को तोड़कर ढाई दिन का झोपड़ा बना सकते हैं तो फिर शिव मंदिर तो जरूर तोड़ा होगा। उन्होंने कहा- यहां तहखाने में शिव मंदिर का दावा है, क्योंकि शिव मंदिर के ऊपर ही दरगाह का निर्माण किया गया है।

भगवान श्री संकट मोचन महादेव विराजमान बनाम दरगाह कमेटी हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता के वकील रामस्वरूप बिश्नोई ने बताया- सिविल जज मनमोहन चंदेल की बेंच ने मामले की सुनवाई को लेकर आगे की तारीख दी है। मामला भगवान श्री संकट मोचन महादेव विराजमान बनाम दरगाह कमेटी के बीच है। इसमें पहले 750 पेजों का वाद पेश किया गया था। बुधवार को संशोधित करके 38 पेजों का किया गया। इसके बाद इसे सिविल कोर्ट में लगाया गया था।

वंशज बोले- सस्ती मानसिकता के चलते ऐसी बातें कर रहे अजमेर दरगाह प्रमुख उत्तराधिकारी और ख्वाजा साहब के वंशज नसरुद्दीन चिश्ती ने कहा- कुछ लोग सस्ती मानसिकता के चलते ऐसी बातें कर रहे हैं। कब तक ऐसा चलता रहेगा। आए दिन हर मस्जिद-दरगाह में मंदिर होने का दावा किया जा रहा है। ऐसा कानून आना चाहिए कि इस तरह की बातें ना की जाएं। ये सारे दावे झूठे और निराधार हैं।

हरबिलास शारदा की किताब की बात छोड़ दें तो क्या 800 साल पुराने इतिहास को नहीं नकारा जा सकता है। यहां हिंदू राजाओं ने अकीदत की है। अंदर जो चांदी (42,961 तोला) का कटहरा है वो जयपुर महाराज का चढ़ाया हुआ है। ये सब झूठी बातें हैं। भारत सरकार में पहले ही 1950 में जस्टिस गुलाम हसन की कमेटी क्लीन चिट दे चुकी है। इसके तहत दरगाह की एक-एक इमारत की जांच की जा चुकी है।

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अजमेर दरगाह में मंदिर होने के 3 आधार पेश किए:हाईकोर्ट के जज की किताब का हवाला; वंशज बोले- ऐसी हरकतें देश के लिए खतरा

अजमेर5 घंटे पहलेलेखक: भरत मूलचंदानी

अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा किया गया है। अजमेर सिविल कोर्ट में लगाई गई याचिका को कोर्ट ने सुनने योग्य मानते हुए सुनवाई की अगली तारीख 20 दिसंबर तय की है। याचिका दायर करने वाले हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने मुख्य रूप से 3 आधार बताए हैं।

याचिकाकर्ता बोला- तथ्य साबित करते हैं कि दरगाह की जगह पहले मंदिर था उन्होंने कहा कि 2 साल की रिसर्च और रिटायर्ड जज हरबिलास शारदा की किताब में दिए गए तथ्यों के आधार पर याचिका दायर की है। किताब में इसका जिक्र है कि यहां ब्राह्मण दंपती रहते थे और दरगाह स्थल पर बने महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना करते थे। इसके अलावा कई अन्य तथ्य हैं, जो साबित करते हैं कि दरगाह से पहले यहां शिव मंदिर रहा था।

याचिकाकर्ता ने कहा- रिटायर्ड जज हरबिलास शारदा की किताब में दिए गए तथ्यों को आधार बनाकर याचिका लगाई है।

याचिकाकर्ता ने कहा- रिटायर्ड जज हरबिलास शारदा की किताब में दिए गए तथ्यों को आधार बनाकर याचिका लगाई है।

20 दिसंबर तक पक्ष रखने के लिए उपस्थित होना है कोर्ट ने अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को नोटिस जारी किया है। 20 दिसंबर को उन्हें अपना पक्ष लेकर उपस्थित होना है।

दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन की ओर से उपलब्ध कराई गई तस्वीर। यह तस्वीर किसी पेंटर ने हाथ से बनाई थी।

दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन की ओर से उपलब्ध कराई गई तस्वीर। यह तस्वीर किसी पेंटर ने हाथ से बनाई थी।

इस मामले को लेकर अजमेर दरगाह प्रमुख उत्तराधिकारी और ख्वाजा साहब के वंशज नसरुद्दीन चिश्ती ने अपना पक्ष रखा है। उन्होंने कहा- ऐसी हरकतें देश की एकता के लिए खतरा हैं। यहां तो हिंदू राजाओं ने भी अकीदत की है। दरगाह में मौजूद कटहरा जयपुर के महाराजा ने भेंट किया है। 1950 के सर्वे में स्पष्ट हो चुका है कि दरगाह में कोई हिंदू मंदिर नहीं था।

दैनिक भास्कर में पढ़िए अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर पहली बार पेश किए गए दावे की पूरी कहानी-

2 साल की रिसर्च के बाद किया दावा हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने बताया- मैंने अजमेर के लोगों को कहते सुना था और आसपास कई बार ये दावे किए गए थे कि दरगाह में पहले संकट मोचक महादेव का मंदिर था। इसकी बनावट को भी लोग संदेह की दृष्टि से देखते थे।

इसे लेकर मैंने 2 साल पहले रिसर्च शुरू की। गूगल पर देखा और कई किताबों को पढ़ने की कोशिश की। इसी दौरान मुझे अजमेर के प्रतिष्ठित जज हरबिलास शारदा की किताब अजमेर : हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव के बारे में जानकारी मिली। इसमें दावा किया गया था कि यहां कभी संकट मोचन महादेव का मंदिर हुआ करता था।

दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन के पास इस तरह की कई तस्वीरें हैं।

दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन के पास इस तरह की कई तस्वीरें हैं।

अजमेर के लोग ही कहते थे यहां हिंदू मंदिर है गुप्ता ने बताया- अजमेर आता तो लोग दबी जुबान में कहते थे कि यहां हिंदू मंदिर रहा है। दरगाह के दरवाजों और इसकी बिल्डिंग पर बनी नक्काशी हिंदू मंदिरों की याद दिलाती है।

गुप्ता कहते हैं- जब मैंने हरबिलास शारदा की किताब को पढ़ा तो उसमें साफ-साफ लिखा था कि यहां पहले ब्राह्मण दंपती रहते थे। यह दंपती सुबह चंदन से महादेव का तिलक करते थे और जलाभिषेक करते थे।

हरबिलास शारदा कोई आम व्यक्ति नहीं थे। वे जोधपुर हाईकोर्ट में सीनियर जज के रूप में रहे। वह अजमेर मेरवाड़ा (1892) के न्यायिक विभाग में भी रहे। यहां अजमेर में तो उनके नाम से हरबिलास शारदा मार्ग भी है। उन्होंने 1911 में यह किताब लिखी थी। गुप्ता ने दावा किया कि यह किताब गलत साबित नहीं हो सकती है।

हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता के दावे के तीन आधार…

दरवाजों की बनावट व नक्काशी : दरगाह में मौजूद बुलंद दरवाजे की बनावट हिंदू मंदिरों के दरवाजे की तरह है। नक्काशी को देखकर भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां पहले हिंदू मंदिर रहा होगा।

ऊपरी स्ट्रक्चर : दरगाह के ऊपरी स्ट्रक्चर देखेंगे तो यहां भी हिंदू मंदिरों के अवशेष जैसी चीजें दिखती हैं। गुम्बदों को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसी हिंदू मंदिर को तोड़कर यहां दरगाह का निर्माण करवाया गया है।

पानी और झरने : जहां-जहां शिव मंदिर हैं, वहां पानी और झरने जरूर होते हैं। यहां (अजमेर दरगाह) भी ऐसा ही है।

गुप्ता कहते हैं- मुस्लिम आक्रांता जब एक विद्यालय को तोड़कर ढाई दिन का झोपड़ा बना सकते हैं तो फिर शिव मंदिर तो जरूर तोड़ा होगा। उन्होंने कहा- यहां तहखाने में शिव मंदिर का दावा है, क्योंकि शिव मंदिर के ऊपर ही दरगाह का निर्माण किया गया है।

भगवान श्री संकट मोचन महादेव विराजमान बनाम दरगाह कमेटी हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता के वकील रामस्वरूप बिश्नोई ने बताया- सिविल जज मनमोहन चंदेल की बेंच ने मामले की सुनवाई को लेकर आगे की तारीख दी है। मामला भगवान श्री संकट मोचन महादेव विराजमान बनाम दरगाह कमेटी के बीच है। इसमें पहले 750 पेजों का वाद पेश किया गया था। बुधवार को संशोधित करके 38 पेजों का किया गया। इसके बाद इसे सिविल कोर्ट में लगाया गया था।

वंशज बोले- सस्ती मानसिकता के चलते ऐसी बातें कर रहे अजमेर दरगाह प्रमुख उत्तराधिकारी और ख्वाजा साहब के वंशज नसरुद्दीन चिश्ती ने कहा- कुछ लोग सस्ती मानसिकता के चलते ऐसी बातें कर रहे हैं। कब तक ऐसा चलता रहेगा। आए दिन हर मस्जिद-दरगाह में मंदिर होने का दावा किया जा रहा है। ऐसा कानून आना चाहिए कि इस तरह की बातें ना की जाएं। ये सारे दावे झूठे और निराधार हैं।

हरबिलास शारदा की किताब की बात छोड़ दें तो क्या 800 साल पुराने इतिहास को नहीं नकारा जा सकता है। यहां हिंदू राजाओं ने अकीदत की है। अंदर जो चांदी (42,961 तोला) का कटहरा है वो जयपुर महाराज का चढ़ाया हुआ है। ये सब झूठी बातें हैं। भारत सरकार में पहले ही 1950 में जस्टिस गुलाम हसन की कमेटी क्लीन चिट दे चुकी है। इसके तहत दरगाह की एक-एक इमारत की जांच की जा चुकी है।

चिश्ती बोले- ऐसा करना देश की एकता को खतरा 27 नवंबर की देर शाम अंजुमन कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती ने कहा- पहले से इस तरह की बयानबाजी चलती आ रही है। अजमेर की दरगाह के देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में लाखों करोड़ों अनुयायी हैं।

उन्होंने कहा- इसी साल 22 जून को मोहन भागवत ने कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश न करें। चिश्ती ने द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का हवाला देते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद के अलावा किसी भी धार्मिक स्थल में कोई बदलाव या छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि ऐसा करना देश की एकता और सहिष्णुता पर खतरा पैदा करेगा।

ओवैसी ने कहा- कानून की धज्जियां उड़ाई जा रहीं

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सोशल मीडिया X पर प्रतिक्रिया दी है।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सोशल मीडिया X पर प्रतिक्रिया दी है।

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देश

भारत के 52वें चीफ जस्टिस बनेंगे जस्टिस बीआर गवई:देश के दूसरे दलित चीफ जस्टिस, 7 महीने का कार्यकाल; 14 मई से संभालेंगे काम

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नई दिल्ली, एजेंसी। भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में जस्टिस बीआर गवई के नाम की आधिकारिक सिफारिश की है। उनके नाम को मंजूरी के लिए केंद्रीय कानून मंत्रालय को भेज दिया गया है। इसके साथ ही जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई का भारत का 52वां मुख्य न्यायाधीश बनना तय हो गया है।

परंपरा है कि मौजूदा CJI अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश तभी करते हैं, जब उन्हें कानून मंत्रालय से ऐसा करने का आग्रह किया जाता है। मौजूदा CJI संजीव खन्ना का कार्यकाल 13 मई को खत्म हो रहा है।

CJI खन्ना के बाद वरिष्ठता सूची में जस्टिस गवई का नाम है। इसलिए जस्टिस खन्ना ने उनका नाम आगे बढ़ाया है। हालांकि उनका कार्यकाल सिर्फ 7 महीने का होगा।

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर दिए प्रोफाइल के मुताबिक जस्टिस गवई 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में प्रमोट हुए थे। उनके रिटायरमेंट की तारीख 23 नवंबर 2025 है।

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वक्फ कानून पर तत्काल रोक से सुप्रीम कोर्ट का इनकार:केंद्र सरकार से पूछा- क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुस्लिमों को जगह देंगे

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नई दिल्ली, एजेंसी। केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को दो घंटे सुनवाई हुई। इस कानून के खिलाफ 100 से ज्यादा याचिकाएं लगाई गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन पर केंद्र से जवाब मांगा है, लेकिन कोर्ट ने कानून के लागू होने पर तत्काल रोक नहीं लगाई है।

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के विरोध में देशभर में हो रही हिंसा पर चिंता जताई। इस पर SG ने कहा कि ऐसा नहीं लगना चाहिए कि हिंसा का इस्तेमाल दबाव डालने के लिए किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि हम इस पर फैसला करेंगे।

सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ कानून के तहत बोर्ड में अब हिंदुओं को भी शामिल किया जाएगा। यह अधिकारों का हनन है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या वह मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति देने को तैयार है। हिंदुओं के दान कानून के मुताबिक, कोई भी बाहरी बोर्ड का हिस्सा नहीं हो सकता है।

CJI संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार, जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता पैरवी कर रहे हैं। वहीं कानून के खिलाफ कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी, सीयू सिंह दलीलें रख रहे हैं।’

सुप्रीम कोर्ट अब गुरुवार 2 बजे सुनवाई करेगा। सुनवाई में अपीलकर्ताओं ने वक्फ बोर्ड बनाने, पुरानी वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन, बोर्ड मेंबर्स में गैर-मुस्लिम और विवादों के निपटारों को लेकर मुख्य दलीलें दीं।

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चीन ने कीमती मेटल्स की सप्लाई रोकी:गाड़ी, हथियार, एयरक्राफ्ट महंगे होंगे; अब ट्रम्प बोले- इलेक्ट्रॉनिक सामान पर भी टैरिफ लगाऊंगा

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वॉशिंगटन डीसी,एजेंसी। चीन ने अमेरिका के साथ बढ़ती ट्रेड वॉर के बीच 7 कीमती धातुओं (रेयर अर्थ मटेरियल) के निर्यात पर रोक लगा दी है।

चीन ने कार, ड्रोन से लेकर रोबोट और मिसाइलों तक असेंबल करने के लिए जरूरी मैग्नेट यानी चुंबकों के शिपमेंट भी चीनी बंदरगाहों पर रोक दिए हैं।

ये मटेरियल ऑटोमोबाइल, सेमीकंडक्टर और एयरोस्पेस बिजनेस के लिए बेहद अहम हैं। इस फैसले से दुनियाभर में मोटरव्हीकल, एयरक्राफ्ट, सेमीकंडक्टर और हथियार बनाने वाली कंपनियों पर असर पड़ेगा। ये महंगे हो जाएंगे।

चीन ने 4 अप्रैल को इन 7 कीमती धातुओं के निर्यात पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था। आदेश के मुताबिक ये कीमती धातुएं और उनसे बने खास चुंबक सिर्फ स्पेशल परमिट के साथ ही चीन से बाहर भेजे जा सकते हैं।

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