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ओली के बाद नेपाल की सत्ता पर किसका कब्जा:रैपर बालेन शाह और पूर्व जज सुशीला कार्की बड़े दावेदार, राजा ज्ञानेंद्र की वापसी भी मुमकिन

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काठमांडू,एजेंसी। नेपाल इस समय अपने सबसे बड़े नागरिक आंदोलन से गुजर रहा है। भ्रष्टाचार और शासन से नाराज जनता ने सरकार का तख्तापलट कर दिया। नतीजा यह हुआ कि प्रधानमंत्री ओली को इस्तीफा देकर भागना पड़ा।

राजनीतिक संकट गहराने के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि देश की बागडोर किसके हाथ में होगी। इस आंदोलन में 5 चेहरों की चर्चा हो रही है, जिनके बारे में माना जा रहा है कि वे अंतरिम प्रधानमंत्री हो सकते हैं…

सुशीला कार्की- भ्रष्टाचार विरोधी चेहरा

सुशीला कार्की को भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख रखने के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत शिक्षक के रूप में की और बाद में जज बनीं। जब सुशीला 2016 में नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस बनीं, तो यह अपने आप में ऐतिहासिक था।

एक साल बाद 2017 में उन पर संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया। आरोप लगाया गया कि वे फैसलों में राजनीतिक दबाव के खिलाफ खड़ी हो रही हैं और न्यायपालिका की आजादी का गलत इस्तेमाल कर रही हैं।

असल में, नेताओं को डर था कि अगर कार्की कोर्ट में ऐसे ही सख्ती दिखाती रहीं, तो उनकी राजनीति और सत्ता को बड़ा नुकसान हो सकता है। इसलिए उन्होंने संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाकर उन्हें पद से हटाने की कोशिश की।

महाभियोग प्रस्ताव आने के बाद सैकड़ों छात्र, महिलाएं और आम लोग काठमांडू की सड़कों पर उतर आए। सुप्रीम कोर्ट ने भी एक ऐतिहासिक आदेश देकर कहा कि जब तक महाभियोग की सुनवाई पूरी नहीं होती, तब तक सुशीला कार्की को काम करने से नहीं रोका जा सकता।

रिटायरमेंट के बाद सुशीला कार्की सरकार के खिलाफ कई आयोजनों में शामिल होती दिखीं।

रिटायरमेंट के बाद सुशीला कार्की सरकार के खिलाफ कई आयोजनों में शामिल होती दिखीं।

जून 2017 में उनकी रिटायरमेंट से सिर्फ एक दिन पहले संसद ने महाभियोग प्रस्ताव वापस ले लिया गया। अब 8 साल बाद वे पीएम बनने की सबसे बड़ी दावेदार कही जा रही हैं।

बालेन शाह- रैपर से काठमांडू के मेयर

काठमांडू के मेयर बनने से पहले बालेंद्र शाह, जिन्हें लोग बालेन के नाम से जानते हैं, नेपाल के अंडरग्राउंड हिप-हॉप सीन में दिखते थे। कभी छतों पर रैप बैटल करते, तो कभी म्यूजिक वीडियो बनाते। उनके गानों में गरीबी, पिछड़ापन और भ्रष्टाचार के मुद्दे उठाए जाते थे।

इन्हीं गीतों ने उन्हें युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया। उनके रैप में अक्सर नेताओं की बेइज्जती की जाती थी, लेकिन तब लोग चौंक गए जब बालेन ने मई 2022 में काठमांडू से मेयर पद के लिए चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया।

बालेन काले ब्लेजर, काली जींस और काले धूप के चश्मे में प्रचार करने जाते, जिसकी खूब चर्चा हुई। निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले सिर्फ 33 साल के बालेन ने बड़े-बड़े दिग्गजों को चुनाव में हरा दिया। वह न‍िर्दलीय उम्‍मीदवर बनकर मेयर का चुनाव जीतने वाले पहले शख्स बने।

नेपाल में काठमांडू के मेयर की हैसियत कई केंद्रीय मंत्री से भी अधिक मानी जाती है। ऐसे में इस जीत की चर्चा सिर्फ नेपाल में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में हुई। साल 2023 में टाइम मैगजीन ने उन्हें दुनिया के टॉप 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया। न्यूयॉर्क टाइम्स ने उनकी प्रोफाइल स्टोरी की।

बालेन शाह ने आम नेताओं के विपरीत ब्लैक ब्लेजर, ब्लैक चश्मा और ब्लैक पैंट में प्रचार किया।

बालेन शाह ने आम नेताओं के विपरीत ब्लैक ब्लेजर, ब्लैक चश्मा और ब्लैक पैंट में प्रचार किया।

बालेन की जीत को नेपाल में ‘बालेन इफेक्ट’ कहा गया। इसका असर ये हुआ कि नवंबर 2022 में होने वाले आम चुनाव में युवा निर्दलीय उम्मीदवारों की एक लहर पैदा हो गई। बिजनेस, डॉक्टर, एयरलाइन जैसे चमकदार पेशा छोड़ युवा राजनीति में उतर आए।

सबने वादा किया कि वे उस पुराने, भ्रष्ट राजनीतिक वर्ग का मुकाबला करेंगे, जिस पर दशकों से बुज़ुर्ग नेताओं का कब्जा है। छह महीने बाद हुए चुनाव में इसका असर भी दिखा। संसद में 25 युवा नेता आए।

बालेन शाह पर यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि वे युवाओं को गुमराह कर सरकार के खिलाफ भड़का रहे हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर उनकी अपार लोकप्रियता बताती है कि बहुत सारे युवा उन्हें अगला प्रधानमंत्री मानने लगे हैं।

रबि लामिछाने- प्रदर्शनकारियों ने जेल से आजाद कराया

लामिछाने नेपाल के युवाओं में बेहद लोकप्रिय हैं। वे पहले टीवी पत्रकार थे और भ्रष्ट नेताओं से सीधे और कठिन सवाल पूछने के अंदाज से मशहूर हुए। उन्होंने 2013 में 62 घंटे से ज्यादा लगातार टॉक शो चलाकर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। फिर ‘सिद्ध कुरा जनता संग’ जैसे कार्यक्रमों से भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता की आवाज बन गए।

2022 में उन्होंने टीवी छोड़ राजनीति में कदम रखा और राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी बनाई। उनकी पार्टी ने चुनाव में 20 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया। खुद उन्होंने भी बड़ी जीत दर्ज की और कुछ ही महीनों बाद उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने।

रबि लामिछाने ने पहली बार पार्टी बनाई और चुनाव लड़े। उनकी पार्टी को 20 सीटें मिलीं।

रबि लामिछाने ने पहली बार पार्टी बनाई और चुनाव लड़े। उनकी पार्टी को 20 सीटें मिलीं।

लेकिन सफलता ज्यादा देर नहीं टिकी। जनवरी 2023 में उनकी नागरिकता पर सवाल उठे। आरोप था कि अमेरिकी नागरिकता छोड़ने के बाद उन्होंने नेपाली नागरिकता दोबारा सही तरीके से नहीं ली। सुप्रीम कोर्ट ने उनका चुनाव रद्द कर दिया और वे मंत्री पद से हट गए। हालांकि बाद में उन्होंने औपचारिकताएं पूरी कीं और फिर से उपचुनाव जीता, इस बार और भी बड़े अंतर से।

लेकिन विवाद उनका पीछा नहीं छोड़ते। कभी पत्रकार की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराए गए, कभी दोहरे पासपोर्ट रखने के आरोप लगे, कभी सरकारी अनुबंधों में गड़बड़ी के। उन पर यह भी आरोप लगा कि उनके फाउंडेशन ने अस्पतालों के लिए मिलने वाली रकम का दुरुपयोग किया।

सबसे गंभीर मामला तब आया जब उन्हें सहकारी धोखाधड़ी केस में फंसा दिया गया। अप्रैल 2025 में उच्च न्यायालय के आदेश के बाद उनकी गिरफ्तारी हुई और सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी हिरासत बरकरार रखी, यह कहते हुए कि सबूतों से छेड़छाड़ का खतरा है।

वह जेल में मुकदमे का इंतजार कर ही रहे थे कि देश में भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों की लहर उठी और लोगों ने उन्हें जबरन जेल से आजाद करा लिया। अब उन्हें भी सत्ता का दावेदार माना जा रहा है।

कुलमान घिसिंग- नेपाल में बिजली की समस्या खत्म की

कुलमान घिसिंग को नेपाल में बिजली कटौती की समस्या को खत्म करने के लिए जाना जाता है। साल 2016 में जब वे नेपाल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (NEA) के मैनेजिंग डायरेक्टर बने तो देश में बिजली की समस्या आम थी। 18-18 घंटे तक बिजली की कटौती होती थी। अगले 2 साल में ही उन्होंने पूरे देश में बिजली की समस्या को लगभग खत्म कर दिया।

उनकी इस उपलब्धि के चलते उन्हें ‘उज्यालो नेपाल का अभियंता’ यानी कि नेपाल को रोशनी की राह दिखाने वाला कहा जाने लगा। कुलमान की लीडरशिप में नेपाल ने 2023-24 में भारत को बिजली निर्यात करना शुरू किया। उन्होंने पहली बार NEA को घाटे से निकालकर मुनाफा दिलाया।

मार्च 2025 में सरकार ने कुलमान को अचानक बर्खास्त कर दिया। दरअसल, उन्होंने उद्योगपतियों का 24 अरब रुपए का बकाया बिजली बिल माफ करने से इनकार किया था। इससे नाराज होकर सरकार ने उनके खिलाफ एक्शन लिया था। उनकी बर्खास्तगी को लेकर बहुत विवाद हुआ। इससे देशभर में उनकी लोकप्रियता बढ़ी।

कुलमान की बर्खास्तगी के बाद देशभर में उनके समर्थन में विरोध प्रदर्शन हुए।

कुलमान की बर्खास्तगी के बाद देशभर में उनके समर्थन में विरोध प्रदर्शन हुए।

इसके बाद उन्होंने ‘उज्यालो नेपाल’ अभियान शुरू किया, इससे युवाओं का रुझान उनकी तरफ हुआ। उन्होंने 2025 में बहरीन, यूएई, और कतर की यात्रा की और प्रवासी नेपालियों का समर्थन जुटाया। अब वे भी नेपाल के अंतरिम पीएम के दावेदार हैं।

सन्दुक रुइट- जेन जी आंदोलन के समर्थक

सन्दुक रुइट नेपाल के मशहूर नेत्र विशेषज्ञ हैं। रुइट ने छोटे चीरे वाली मोतियाबिंद सर्जरी शुरू की थी, इससे सर्जरी का खर्च कम हुआ। इस तरीके को दुनियाभर के देशों में अपनाया गया। इसके बाद वे ‘गॉड ऑफ साइट’ यानी ’दृष्टि के देवता’ नाम से मशहूर हुए।

रुइट ने 1994 में तिलगंगा नेत्र विज्ञान संस्थान की स्थापना की थी जो हर हफ्ते 2500 मरीजों का इलाज करता है। इसमें 40% सर्जरी मुफ्त है। उन्होंने अपने करियर में मोतियाबिंद सर्जरी करके 1.8 लाख लोगों की आंखों की रोशनी लौटाई है।

सन्दुक रुइट की लोकप्रियता दुनियाभर में है।

सन्दुक रुइट की लोकप्रियता दुनियाभर में है।

ऑस्ट्रेलिया, बहरीन और भारत जैसे देशों में उनके संपर्क हैं, जो उनकी अंतरराष्ट्रीय छवि को मजबूत बनाते हैं। हालांकि रुइट ने कभी कोई राजनीतिक पद नहीं संभाला है। 2023 में उन्हें राष्ट्रपति बनाने की चर्चा थी, इस पर उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति का पद मेरे लिए नहीं है। सन्दुक ने जेन जी आंदोलन को समर्थन दिया है।

डॉ. रुइट को रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (2006), पद्म श्री (2018), ईसा पुरस्कार (2023), भूटान का राष्ट्रीय मेरिट पुरस्कार (2015), नेपाल का राष्ट्रीय प्रतिभा पुरस्कार (2019) जैसे सम्मान मिल चुके हैं।

ज्ञानेंद्र शाह- नेपाल के आखिरी राजा

ज्ञानेंद्र शाह 1950-51 में महज 3 साल की उम्र में पहली बार राजा बने थे। उस समय उनके दादा त्रिभुवन भारत भाग गए थे और शाही परिवार संकट में था। तब राणा शासकों ने छोटी उम्र के ज्ञानेंद्र को गद्दी पर बिठा दिया ताकि आसानी से शासन चलाया जा सके। हालांकि कुछ ही महीनों बाद त्रिभुवन वापस लौटे और वे फिर से राजा बने।

इसके बाद ज्ञानेंद्र लंबे समय तक परछाईं में ही रहे। 1 जून 2001 को शाही नरसंहार में उनके बड़े भाई राजा बीरेंद्र, महारानी ऐश्वर्या और शाही परिवार के कई सदस्य मारे गए। इस त्रासदी के बाद अचानक ज्ञानेंद्र शाह को नेपाल की गद्दी संभालनी पड़ी। यही पल उनकी दूसरी और सबसे बड़ी राजनीतिक वापसी का जरिया बना।

नेपाल में 2008 में 240 साल पुरानी राजशाही को समाप्त कर दिया गया और लोकतंत्र बहाल हुआ। ज्ञानेंद्र को राजमहल खाली करना पड़ा। इसके बाद ज्ञानेंद्र लंबे समय तक खामोश रहे, लेकिन हाल के वर्षों में फिर चर्चा में आए।

ज्ञानेंद्र शाह को फिर से राजा बनाए जाने की मांग पिछले 2 साल से चल रही है।

ज्ञानेंद्र शाह को फिर से राजा बनाए जाने की मांग पिछले 2 साल से चल रही है।

लोकतंत्र से निराश खासकर हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों ने उन्हें प्रतीक बनाकर राजशाही की वापसी की मांग तेज कर दी है। उनकी रैलियों में नारे लगते हैं—“राजा आओ, देश बचाओ।” अब ओली सरकार के पतन और मौजूदा राजनीतिक संकट के बीच उन्हें अगला पीएम दावेदार माना जाने लगा है।

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PAK-आर्मी चीफ ने सैनिकों को आतंकियों के जनाजे में भेजा:जैश कमांडर बोला- जवानों ने वर्दी में अंतिम सलामी दी, ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए थे

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इस्लामाबाद,एजेंसी। पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने सैन्य अधिकारियों को ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए आतंकियों के अंतिम संस्कार में शामिल होने का आदेश दिया था। यह खुलासा आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख कमांडर मसूद इलियास कश्मीरी ने किया है।

कश्मीरी का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह कह रहा है- “जनरल हेडक्वार्टर ने शहीदों को सम्मानित करने और अंतिम सलामी देने का आदेश दिया है। कोर कमांडरों को जनाजों के साथ चलने और वर्दी में उनकी सुरक्षा करने को कहा गया।”

कुछ महीने पहले पाकिस्तानी सैनिकों की सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हुई थी। इसमें सैनिक मारे गए आतंकी के अंतिम संस्कार में शामिल दिखाई दिए थे। पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की एयर स्ट्राइक में 100 से ज्यादा आतंकी मारे गए थे।

लश्कर के आतंकी ठिकाने मुरीदके में पाकिस्तानी सैनिकों के लोग भारत के हमले में मारे गए आतंकियों के नमाज-ए-जनाजा में शामिल हुए थे। तस्वीर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान की है।

लश्कर के आतंकी ठिकाने मुरीदके में पाकिस्तानी सैनिकों के लोग भारत के हमले में मारे गए आतंकियों के नमाज-ए-जनाजा में शामिल हुए थे। तस्वीर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान की है।

कोर कमांडरों को जनाजे में शामिल होने और वर्दी में उसकी सुरक्षा करने के लिए कहा गया था।

कोर कमांडरों को जनाजे में शामिल होने और वर्दी में उसकी सुरक्षा करने के लिए कहा गया था।

आतंकी कैंपों और पाकिस्तानी सेना का गठजोड़

मसूद इलियास कश्मीरी ने अपने बयान में यह भी खुलासा किया कि पाकिस्तान सेना की मीडिया विंग इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) ने संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और बहावलपुर के आतंकी कैंपों के बीच के संबंधों को छिपाने की पूरी कोशिश की।

यह बयान उस समय आया है, जब पाकिस्तान बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह दावा करता रहा है कि उसके देश में कोई आतंकी कैंप नहीं चल रहा है। पाकिस्तान सरकार और सेना ने हमेशा बहावलपुर में जैश के कैंपों के होने से इनकार किया है।

आतंकी कसूरी ने PM मोदी को अंजाम भुगतने की धमकी दी

इससे पहले बुधवार को लश्कर-ए-तैयबा के उप-प्रमुख सैफुल्लाह कसूरी ने टेलीग्राम पर वीडियो जारी कर भारत और पीएम मोदी को अंजाम भुगतने की धमकी दी।

सैफुल्लाह 22 अप्रैल के पहलगाम हमले के मास्टरमाइंड में से एक है। वीडियो में, कसूरी ने चेतावनी दी कि जम्मू-कश्मीर में भारतीय बांधों, नदियों और इलाकों पर कब्जा करने की कोशिशें की जाएगी।

कसूरी ने खुलासा किया कि पाकिस्तान सरकार और सेना आतंकवादी संगठन को मुरीदके में अपना मुख्यालय फिर से बनाने के लिए धन मुहैया करा रही है, जिसे ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तबाह कर दिया गया था।

आतंकी बोला- ईंट का जवाब पत्थर से देंगे

कसूरी ने जनता से समर्थन मांगते हुए कहा , ‘हम मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन हमारा मनोबल ऊंचा है। हम अपने लोगों के नरम हैं, लेकिन अपने दुश्मनों के लिए उतने ही खतरनाक हैं। हमारे दुश्मनों को यह नहीं सोचना चाहिए कि हम कमजोर हैं, हम पूरी ताकत से जवाब देंगे।’

कसूरी ने आगे कहा, ‘भारत जो भी कदम उठा रहे हैं, उसे उसकी कीमत चुकानी होगी। हर जख्म का बदला लेंगे और ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा। हम हर कीमत पर अपनी धरती, अपनी जमीन की हिफाजत करेगें।’

भारत ने 9 आतंकी ठिकानों तबाह किए थे

7 मई, 2025 को भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में मौजूद 9 आतंकी ठिकानों पर सटीक सैन्य हमले किए थे। यह कार्रवाई जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में की गई थी, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी।

भारतीय सेना ने इस ऑपरेशन में सवाई नाला, सरजाल, मुरीदके, कोटली, कोटली गुलपुर, मेहमूना जोया, भिंबर और बहावलपुर जैसे आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। इनमें से मुरिदके, आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय भी था।

इस ऑपरेशन में 100 से अधिक आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि हुई थी। इसके कुछ ही दिनों बाद भारतीय सेना ने उन पाकिस्तानी सेना और पंजाब प्रांत के पुलिस अधिकारियों के नाम सार्वजनिक किए, जो मारे गए आतंकियों के अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे।

जैश के चीफ मसूद अजहर के परिवार के 10 लोग मारे गए थे

एयर स्ट्राइक में 100 से ज्यादा आतंकी मारे गए हैं। इनमें लश्कर-ए-तैयबा का हाफिज अब्दुल मलिक भी शामिल है। मलिक मुरीदके स्थित मरकज तैयबा पर हुई एयर स्ट्राइक में मारा गया। हाफिज अब्दुल मलिक संगठन का अहम चेहरा माना जाता था और लंबे समय से सुरक्षा एजेंसियों की रडार पर था।

BBC उर्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर ने कहा है कि सुभान अल्लाह मस्जिद पर हमले में उसके परिवार के 10 सदस्य और चार करीबी सहयोगी मारे गए हैं। मरने वालों में मसूद अजहर की बहन का पति भी शामिल है।

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सऊदी-PAK के बीच रक्षा समझौता, मिलकर हमले का जवाब देंगे:दावा- एटमी हथियार का भी इस्तेमाल शामिल, भारत बोला- पहले से जानकारी थी

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रियाद,एजेंसी। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बुधवार को एक रक्षा समझौते पर साइन किए। इस समझौते के तहत एक देश पर हमला दूसरे पर भी हमला माना जाएगा।

सऊदी प्रेस एजेंसी के मुताबिक, दोनों देशों ने एक जॉइंट स्टेटमेंट में कहा कि यह समझौता दोनों देशों की सुरक्षा बढ़ाने और विश्व में शांति स्थापित करने की प्रतिबद्धता को दिखाता है। इस समझौते के तहत दोनों देशों के बीच डिफेंस कॉर्पोरेशन भी डेवलप किया जाएगा।

रॉयटर्स के मुताबिक इस समझौते के तहत मिलिट्री सहयोग किया जाएगा। इसमें जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का इस्तेमाल भी शामिल है। सऊदी अरब और पाकिस्तान के रक्षा समझौते पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत सरकार को इसकी जानकारी पहले से थी।

सऊदी अरब की राजधानी रियाद के यमामा पैलेस में हुई इस बैठक में क्राउन प्रिंस और शहबाज शरीफ ने चर्चा की।

सऊदी अरब की राजधानी रियाद के यमामा पैलेस में हुई इस बैठक में क्राउन प्रिंस और शहबाज शरीफ ने चर्चा की।

समझौते के वक्त पाकिस्तानी सेना प्रमुख भी मौजूद थे

शहबाज शरीफ के साथ पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर, उप प्रधानमंत्री इशाक डार, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ, वित्त मंत्री मोहम्मद औरंगजेब और हाई लेवल डेलिगेशन सऊदी पहुंचा है।

जिस वक्त इस रक्षा समझौते पर साइन किए जा रहे थे, तब पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर भी वहां मौजूद थे।

एक अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि यह समझौता किसी खास देश या घटना के खिलाफ नहीं हुआ है, बल्कि दोनों देशों के बीच लंबे समय तक चलने वाले गहरे सहयोग का आधिकारिक रूप है।

सऊदी प्रिंस सलमान के साथ शहबाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर।

सऊदी प्रिंस सलमान के साथ शहबाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर।

पाकिस्तान ने नाटो जैसी फोर्स बनाने का सुझाव दिया था

इजराइल ने 9 सितंबर को कतर की राजधानी दोहा में हमास चीफ खलील अल-हय्या को निशाना बनाकर हमला किया था। इस हमले में अल-हय्या बच तो गया था, लेकिन 6 अन्य लोगों की मौत हो गई थी।

इसके बाद 14 सितंबर को दोहा में मुस्लिम देशों के कई नेता इजराइल के खिलाफ एक खास बैठक के लिए इकट्ठा हुए थे। यहां पाकिस्तान ने सभी इस्लामी देशों को NATO जैसी जॉइंट फोर्स बनाने का सुझाव दिया था।

पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री मोहम्मद इशाक डार ने एक जॉइंट डिफेंस फोर्स बनाने की संभावना का जिक्र करते हुए कहा था कि न्यूक्लियर पावर पाकिस्तान इस्लामिक समुदाय (उम्माह) के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाएगा।

रविवार को इस्लामी देशों के नेताओं ने इजराइल के खिलाफ बंद कमरे में मीटिंग की।

रविवार को इस्लामी देशों के नेताओं ने इजराइल के खिलाफ बंद कमरे में मीटिंग की।

एक्सपर्ट बोले- यह समझौता औपचारिक ‘संधि’ नहीं है

अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका के राजदूत रह चुके जलमय खलीलजाद ने भी इस समझौते पर बयान दिया है। उन्होंने कहा कि यह समझौता हालांकि औपचारिक ‘संधि’ नहीं है, लेकिन इसकी गंभीरता को देखते हुए यह एक बड़ी रणनीतिक साझेदारी मानी जा रही है।

खलीलजाद ने आगे कहा कि क्या यह समझौता कतर में इजराइल हमले के जवाब में किया गया है? या ये लंबे समय से चली आ रही अफवाहों की पुष्टि करता है कि सऊदी अरब, पाकिस्तान के एटमी हथियार प्रोग्राम का अघोषित सहयोगी रहा है।

खलीलजाद ने पूछा कि क्या इस समझौते में सीक्रेट क्लॉज हैं, अगर हां, तो वे क्या हैं? क्या ये समझौता बताता है कि सऊदी अरब अब अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता है।

उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार और ऐसे मिसाइल सिस्टम हैं जो पूरे मिडिल ईस्ट और इजराइल तक मार कर सकते हैं। कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि पाकिस्तान ऐसे हथियार भी डेवलप कर रहा है जो अमेरिका तक पहुंच सकते हैं।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता बोले- भारत पर असर की जांच करेंगे

सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच रक्षा समझौते पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा

यह समझौता दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद संबंधों को औपचारिक रूप देता है। इससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर क्या असर पड़ेगा, इसकी जांच की जाएगी। भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

अमेरिका के साथ भी पाकिस्तान ने सऊदी जैसा रक्षा समझौता किया था

पाकिस्तान ने सऊदी जैसा रक्षा समझौता अमेरिका के भी साथ किया था। 1979 में ये समझौता टूट गया था। उससे पहले भारत पाकिस्तान के बीच 2 जंग हुईं लेकिन एक में भी अमेरिका ने उसकी सीधे मदद नहीं की।

पाकिस्तान-अमेरिका का पुराना रक्षा समझौता: 1950 में कोल्ड वॉर के दौरान, अमेरिका ने सोवियत संघ के विस्तार को रोकने के लिए दक्षिण एशिया में सहयोगियों की तलाश की। इस समय पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ सैन्य गठबंधन को अपनाया।

  • म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एग्रीमेंट (MDAA), 19 मई 1954: यह पाकिस्तान और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय समझौता था। इसमें म्यूचुअल डिफेंस के नियम थे, यानी दोनों देश एक-दूसरे को सैन्य सहायता (हथियार, प्रशिक्षण, उपकरण) देंगे। अमेरिका ने पाकिस्तान को सामूहिक सुरक्षा प्रयासों (जैसे सामान्य जंग में) में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसमें पाकिस्तान के रिसोर्स, सैनिक और रणनीतिक सुविधाएं शामिल थीं। यह समझौता अमेरिका के म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एक्ट (1949) पर बेस्ड था, जो यूरोप और एशिया में सहयोगियों को सैन्य सहायता देता था।
  • SEATO (1954) और CENTO (1955): MDAA के बाद पाकिस्तान ने साउथ ईस्ट एशिया ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (SEATO) और बगदाद पैक्ट (बाद में CENTO) में शामिल होकर इसे मजबूत किया। इन संगठनों के अनुच्छेदों में किसी एक पर हमले में सामूहिक प्रतिक्रिया का प्रावधान था, यानी एक सदस्य पर आक्रमण को सभी पर आक्रमण माना जाएगा (नाटो जैसा)। अमेरिका ने इनके तहत पाकिस्तान को 7 हजार करोड़ से ज्यादा की सैन्य सहायता दी, जिसमें हथियार और प्रशिक्षण शामिल थे।

1979 में समझौता क्यों टूटा?

CENTO का अंत 1979 में हुआ, हालांकि MDAA द्विपक्षीय था, लेकिन CENTO के ढांचे से जुड़ा था।

  • ईरान की क्रांति (1979): ईरान के शाह का पतन और इस्लामी क्रांति के बाद ईरान ने CENTO से 15 मार्च 1979 को वापसी की। ईरान CENTO का प्रमुख सदस्य था, इसलिए संगठन कमजोर हो गया।
  • पाकिस्तान की वापसी: 12 मार्च 1979 को पाकिस्तान ने भी CENTO छोड़ दिया। इसके कारण थे सोवियत आक्रमण, अफगानिस्तान (दिसंबर 1979) के बाद पाकिस्तान की गुटनिरपेक्ष नीति और अमेरिका के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव (जैसे 1979 में पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर अमेरिकी प्रतिबंध)।
  • अमेरिकी सहायता पर प्रतिबंध: जिमी कार्टर प्रशासन ने पाकिस्तान के गुप्त यूरेनियम एनरिचमेंट (न्यूक्लियर हथियार कार्यक्रम) पर 1979 में सैन्य सहायता रोक दी। इससे गठबंधन प्रभावी रूप से खत्म हो गया।

समझौते के बाद भी अमेरिका ने मदद नहीं दी

CENTO 16 मार्च 1979 को पूरी तरह खत्म हुआ। हालांकि, अमेरिका-पाकिस्तान संबंध बाद में अफगान युद्ध (1979 के बाद) में फिर मजबूत हुए, लेकिन पुराना म्यूचुअल डिफेंस फ्रेमवर्क टूट चुका था।

इससे पहले 1947, 1965 और 1971 में भारत पाक जंग में भी में अमेरिका ने पाकिस्तान की सीधी सैन्य मदद नहीं की, भले ही म्यूचुअल डिफेंस प्रावधान थे। अमेरिका ने इन जंग को क्षेत्रीय विवाद माना, न कि गठबंधन के तहत सामूहिक रक्षा का मामला।

MDAA/SEATO/CENTO खासतौर पर सोवियत/कम्युनिस्ट खतरों के खिलाफ थे, न कि भारत किसी और गुट के खिलाफ। इसलिए, पाकिस्तान को अपेक्षित मदद नहीं मिली, जिससे गठबंधन पर सवाल उठे।

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 कैनेबरा,एजेंसी।ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया में पहली बार 16 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया (SM) अकाउंट्स पर बैन लागू करने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। सरकार ने मंगलवार को टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए गाइडलाइन जारी की, ताकि 10 दिसंबर से लागू होने वाले इस कानून को सही तरीके से लागू किया जा सके।

  क्या होगा नया नियम 

  •  सोशल मीडिया कंपनियों को 16 साल से कम उम्र के बच्चों के मौजूदा अकाउंट्स खोजकर बंद करने होंगे। 
  •  बच्चों के अकाउंट बंद होने के बाद उन्हें तुरंत नया अकाउंट बनाने से रोकने के लिए भी कंपनियों को कदम उठाने होंगे।
  •  हर यूज़र की उम्र जांचना ज़रूरी नहीं होगा और न ही सरकार किसी विशेष तकनीक का इस्तेमाल अनिवार्य करेगी।
  •  लेकिन कंपनियों को यह बताना होगा कि वे बैन लागू करने के लिए कौन-से उपाय कर रही हैं और विवाद की स्थिति में समाधान की प्रक्रिया उपलब्ध करानी होगी।
  • सख्त जुर्माना
  • अगर कोई कंपनी इस कानून को लागू करने के लिए “उचित कदम” नहीं उठाती है, तो उसे 49.5 मिलियन ऑस्ट्रेलियन डॉलर (लगभग 33 मिलियन अमेरिकी डॉलर)  तक का जुर्माना भरना पड़ेगा। सरकार के संचार मंत्री एनीका वेल्स ने कहा-“हम तुरंत पूरी तरह सही नतीजे की उम्मीद नहीं कर रहे। यह दुनिया का पहला ऐसा कानून है, लेकिन हम वाजिब कदमों के ज़रिए बदलाव लाना चाहते हैं, ताकि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित हो।”
  • ट्रायल में सफलता
  • ऑस्ट्रेलिया की ई-सेफ्टी कमिश्नर जूली इनमैन ग्रांट ने भी माना कि कंपनियों को नई तकनीक और सिस्टम बनाने में समय लगेगा। शुरुआती दिनों में उनका ध्यान उन प्लेटफॉर्म्स पर होगा, जो सिस्टम लागू करने में नाकाम साबित होंगे।सरकार ने अगस्त 2025 में एक ट्रायल किया था, जिसमें पाया गया कि  एज-अश्योरेंस टेक्नोलॉजी (उम्र सत्यापन तकनीक) बच्चों की उम्र की सही पहचान करने और नियम लागू करने में काफी प्रभावी साबित हो सकती है।

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