विदेश
ईरान बोला-नेतन्याहू की मदद करने वाले अरब देश नतीजा भुगतेंगे:लेबनान में UN पोस्ट पर इजराइली हमले जारी, भारत समेत 11 देशों की आपत्ति नजरअंदाज
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11 months agoon
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Divya Akash
बेरूत,एजेंसी। इजराइल और लेबनान में जारी लड़ाई के बीच ईरान ने अरब देशों और मिडिल ईस्ट में अमेरिका के सहयोगियों के लिए चेतावनी जारी की है। अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक, ईरान ने डिप्लोमैटिक चैनल के जरिए यह धमकी दी है।
ईरान ने कहा कि अगर किसी भी देश ने इजराइल को उस पर हमला करने में मदद की या अपने एयरस्पेस का इस्तेमाल करने दिया, तो उसे खामियाजा भुगतना होगा। दरअसल, ईरान ने 1 अक्टूबर को इजराइल पर 180 मिसाइलों से हमला कर दिया था। इसके बाद से इजराइल पलटवार की तैयारी कर रहा है।
कई मीडिया रिपोर्ट्स में आशंका जताई गई है कि इजराइल ईरान के तेल भंडारों या परमाणु ठिकानों को निशाना बना सकता है। इधर इजराइल ने 48 घंटे में दूसरी बार लेबनान में UN पीस कीपिंग फोर्स (UNIFIL) पर हमला किया है।
अलजजीरा के मुताबिक, शुक्रवार को UNIFIL ने हमले की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि इजराइल ने नाकोरा शहर में उनके हेडक्वार्टर पर धमाके किए। 2 पीसकीपर्स घायल हो गए। ये दोनों श्रीलंका के नागरिक हैं।

इजराइल ने शुक्रवार को लेबनान में UN पीस मिशन के हेडक्वार्टर पर हमला किया।
इजराइल बोला- हमले से पहले UN पीसकीपर्स को वॉर्निंग दी थी हमले के बाद इजराइल ने कहा कि सेना को इस इलाके में खतरे की जानकारी मिली थी। अटैक से पहले UN कर्मचारियों को वॉर्निंग दी गई थी। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि वे इजराइल से अपील करते हैं कि वह हिजबुल्लाह से लड़ाई के बीच UN पीसकीपर्स पर हमला करना बंद करे।
इजराइल ने गुरुवार को भी UNIFIL पर पहला हमला किया था। इसमें इंडोनेशिया के 2 पीसकीपर्स घायल हो गए थे। इजराइल के इस हमले पर भारत, कनाडा, इंडोनेशिया, अमेरिका समेत 11 देशों ने आपत्ति जताई थी। इसके बावजूद इजराइल ने UN पोस्ट पर दोबारा अटैक किया।
दरअसल, लेबनान में UN पीस मिशन के तहत भारत के भी 600 सैनिक तैनात हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि पीसकीपिंग फोर्स की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए। इजराइल पर ईरानी हमले के बाद अमेरिका ने ईरान के पेट्रोलियम और पेट्रोकेमिकल सेक्टर पर प्रतिबंध बढ़ा दिए हैं। अमेरिका ने इजराइल की ‘घोस्ट फ्लीट’ पर भी पाबंदियां लगा दी हैं, जो उसके तेल को दुनिया भर में खरीददारों तक पहुंचाती है।
इजराइल में योम किप्पुर त्योहार पर हाई-अलर्ट इजराइल में आज (12 अक्टूबर) योम किप्पुर का त्योहार मनाया जा रहा है। यह यहूदियों के लिए सबसे पवित्र दिनों में से एक होता है। टाइम्स ऑफ इजराइल के मुताबिक, शुक्रवार दोपहर से ही इजराइल को बंद कर दिया गया था। पूरे देश को हाई-अलर्ट पर रखा गया है। इसके अलावा जगह-जगह खास अलर्ट सिस्टम भी लगाए हैं, जिससे हमले की स्थिति लोगों को तुरंत जानकारी दी जा सके।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, त्योहार शुरू होने के शुरुआती कुछ घंटों में इजराइल पर लेबनान से 120 रॉकेट दागे गए, जिनमें से ज्यादातर को इजराइली डिफेंस सिस्टम ने रोक दिया। 1973 के बाद यह पहली बार है जब योम किप्पुर के दौरान इजराइल जंग लड़ रहा है।
दरअसल, 1973 में योम किप्पुर के दिन 6 अक्टूबर को मिस्र और सीरिया के नेतृत्व में अरब देशों ने इजराइल पर हमला कर दिया। मिस्र के राष्ट्रपति मोहम्मद अनवर सादात और सीरियाई राष्ट्रपति हफीज अल असद उस जमीन को वापस पाना चाहते थे, जिसे इजराइल ने 1967 के सिक्स डे वॉर में कब्जा कर लिया था।
इस जंग में रूस, सीरिया और मिस्र की मदद कर रहा था। ऐसे में अमेरिका ने इजराइल का समर्थन किया और उसे हथियारों की मदद पहुंचाई। अमेरिका की इस मदद से इजराइल इस जंग में बढ़त हासिल करने में कामयाब रहा था।
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PAK-आर्मी चीफ ने सैनिकों को आतंकियों के जनाजे में भेजा:जैश कमांडर बोला- जवानों ने वर्दी में अंतिम सलामी दी, ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए थे
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9 hours agoon
September 18, 2025By
Divya Akash
इस्लामाबाद,एजेंसी। पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने सैन्य अधिकारियों को ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए आतंकियों के अंतिम संस्कार में शामिल होने का आदेश दिया था। यह खुलासा आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख कमांडर मसूद इलियास कश्मीरी ने किया है।
कश्मीरी का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह कह रहा है- “जनरल हेडक्वार्टर ने शहीदों को सम्मानित करने और अंतिम सलामी देने का आदेश दिया है। कोर कमांडरों को जनाजों के साथ चलने और वर्दी में उनकी सुरक्षा करने को कहा गया।”
कुछ महीने पहले पाकिस्तानी सैनिकों की सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हुई थी। इसमें सैनिक मारे गए आतंकी के अंतिम संस्कार में शामिल दिखाई दिए थे। पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की एयर स्ट्राइक में 100 से ज्यादा आतंकी मारे गए थे।

लश्कर के आतंकी ठिकाने मुरीदके में पाकिस्तानी सैनिकों के लोग भारत के हमले में मारे गए आतंकियों के नमाज-ए-जनाजा में शामिल हुए थे। तस्वीर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान की है।

कोर कमांडरों को जनाजे में शामिल होने और वर्दी में उसकी सुरक्षा करने के लिए कहा गया था।
आतंकी कैंपों और पाकिस्तानी सेना का गठजोड़
मसूद इलियास कश्मीरी ने अपने बयान में यह भी खुलासा किया कि पाकिस्तान सेना की मीडिया विंग इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) ने संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और बहावलपुर के आतंकी कैंपों के बीच के संबंधों को छिपाने की पूरी कोशिश की।
यह बयान उस समय आया है, जब पाकिस्तान बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह दावा करता रहा है कि उसके देश में कोई आतंकी कैंप नहीं चल रहा है। पाकिस्तान सरकार और सेना ने हमेशा बहावलपुर में जैश के कैंपों के होने से इनकार किया है।
आतंकी कसूरी ने PM मोदी को अंजाम भुगतने की धमकी दी
इससे पहले बुधवार को लश्कर-ए-तैयबा के उप-प्रमुख सैफुल्लाह कसूरी ने टेलीग्राम पर वीडियो जारी कर भारत और पीएम मोदी को अंजाम भुगतने की धमकी दी।
सैफुल्लाह 22 अप्रैल के पहलगाम हमले के मास्टरमाइंड में से एक है। वीडियो में, कसूरी ने चेतावनी दी कि जम्मू-कश्मीर में भारतीय बांधों, नदियों और इलाकों पर कब्जा करने की कोशिशें की जाएगी।
कसूरी ने खुलासा किया कि पाकिस्तान सरकार और सेना आतंकवादी संगठन को मुरीदके में अपना मुख्यालय फिर से बनाने के लिए धन मुहैया करा रही है, जिसे ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तबाह कर दिया गया था।
आतंकी बोला- ईंट का जवाब पत्थर से देंगे
कसूरी ने जनता से समर्थन मांगते हुए कहा , ‘हम मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन हमारा मनोबल ऊंचा है। हम अपने लोगों के नरम हैं, लेकिन अपने दुश्मनों के लिए उतने ही खतरनाक हैं। हमारे दुश्मनों को यह नहीं सोचना चाहिए कि हम कमजोर हैं, हम पूरी ताकत से जवाब देंगे।’
कसूरी ने आगे कहा, ‘भारत जो भी कदम उठा रहे हैं, उसे उसकी कीमत चुकानी होगी। हर जख्म का बदला लेंगे और ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा। हम हर कीमत पर अपनी धरती, अपनी जमीन की हिफाजत करेगें।’
भारत ने 9 आतंकी ठिकानों तबाह किए थे
7 मई, 2025 को भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में मौजूद 9 आतंकी ठिकानों पर सटीक सैन्य हमले किए थे। यह कार्रवाई जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में की गई थी, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी।
भारतीय सेना ने इस ऑपरेशन में सवाई नाला, सरजाल, मुरीदके, कोटली, कोटली गुलपुर, मेहमूना जोया, भिंबर और बहावलपुर जैसे आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। इनमें से मुरिदके, आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय भी था।
इस ऑपरेशन में 100 से अधिक आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि हुई थी। इसके कुछ ही दिनों बाद भारतीय सेना ने उन पाकिस्तानी सेना और पंजाब प्रांत के पुलिस अधिकारियों के नाम सार्वजनिक किए, जो मारे गए आतंकियों के अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे।
जैश के चीफ मसूद अजहर के परिवार के 10 लोग मारे गए थे
एयर स्ट्राइक में 100 से ज्यादा आतंकी मारे गए हैं। इनमें लश्कर-ए-तैयबा का हाफिज अब्दुल मलिक भी शामिल है। मलिक मुरीदके स्थित मरकज तैयबा पर हुई एयर स्ट्राइक में मारा गया। हाफिज अब्दुल मलिक संगठन का अहम चेहरा माना जाता था और लंबे समय से सुरक्षा एजेंसियों की रडार पर था।
BBC उर्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर ने कहा है कि सुभान अल्लाह मस्जिद पर हमले में उसके परिवार के 10 सदस्य और चार करीबी सहयोगी मारे गए हैं। मरने वालों में मसूद अजहर की बहन का पति भी शामिल है।
विदेश
सऊदी-PAK के बीच रक्षा समझौता, मिलकर हमले का जवाब देंगे:दावा- एटमी हथियार का भी इस्तेमाल शामिल, भारत बोला- पहले से जानकारी थी
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9 hours agoon
September 18, 2025By
Divya Akash
रियाद,एजेंसी। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बुधवार को एक रक्षा समझौते पर साइन किए। इस समझौते के तहत एक देश पर हमला दूसरे पर भी हमला माना जाएगा।
सऊदी प्रेस एजेंसी के मुताबिक, दोनों देशों ने एक जॉइंट स्टेटमेंट में कहा कि यह समझौता दोनों देशों की सुरक्षा बढ़ाने और विश्व में शांति स्थापित करने की प्रतिबद्धता को दिखाता है। इस समझौते के तहत दोनों देशों के बीच डिफेंस कॉर्पोरेशन भी डेवलप किया जाएगा।
रॉयटर्स के मुताबिक इस समझौते के तहत मिलिट्री सहयोग किया जाएगा। इसमें जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का इस्तेमाल भी शामिल है। सऊदी अरब और पाकिस्तान के रक्षा समझौते पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत सरकार को इसकी जानकारी पहले से थी।

सऊदी अरब की राजधानी रियाद के यमामा पैलेस में हुई इस बैठक में क्राउन प्रिंस और शहबाज शरीफ ने चर्चा की।
समझौते के वक्त पाकिस्तानी सेना प्रमुख भी मौजूद थे
शहबाज शरीफ के साथ पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर, उप प्रधानमंत्री इशाक डार, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ, वित्त मंत्री मोहम्मद औरंगजेब और हाई लेवल डेलिगेशन सऊदी पहुंचा है।
जिस वक्त इस रक्षा समझौते पर साइन किए जा रहे थे, तब पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर भी वहां मौजूद थे।
एक अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि यह समझौता किसी खास देश या घटना के खिलाफ नहीं हुआ है, बल्कि दोनों देशों के बीच लंबे समय तक चलने वाले गहरे सहयोग का आधिकारिक रूप है।

सऊदी प्रिंस सलमान के साथ शहबाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर।
पाकिस्तान ने नाटो जैसी फोर्स बनाने का सुझाव दिया था
इजराइल ने 9 सितंबर को कतर की राजधानी दोहा में हमास चीफ खलील अल-हय्या को निशाना बनाकर हमला किया था। इस हमले में अल-हय्या बच तो गया था, लेकिन 6 अन्य लोगों की मौत हो गई थी।
इसके बाद 14 सितंबर को दोहा में मुस्लिम देशों के कई नेता इजराइल के खिलाफ एक खास बैठक के लिए इकट्ठा हुए थे। यहां पाकिस्तान ने सभी इस्लामी देशों को NATO जैसी जॉइंट फोर्स बनाने का सुझाव दिया था।
पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री मोहम्मद इशाक डार ने एक जॉइंट डिफेंस फोर्स बनाने की संभावना का जिक्र करते हुए कहा था कि न्यूक्लियर पावर पाकिस्तान इस्लामिक समुदाय (उम्माह) के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाएगा।

रविवार को इस्लामी देशों के नेताओं ने इजराइल के खिलाफ बंद कमरे में मीटिंग की।
एक्सपर्ट बोले- यह समझौता औपचारिक ‘संधि’ नहीं है
अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका के राजदूत रह चुके जलमय खलीलजाद ने भी इस समझौते पर बयान दिया है। उन्होंने कहा कि यह समझौता हालांकि औपचारिक ‘संधि’ नहीं है, लेकिन इसकी गंभीरता को देखते हुए यह एक बड़ी रणनीतिक साझेदारी मानी जा रही है।
खलीलजाद ने आगे कहा कि क्या यह समझौता कतर में इजराइल हमले के जवाब में किया गया है? या ये लंबे समय से चली आ रही अफवाहों की पुष्टि करता है कि सऊदी अरब, पाकिस्तान के एटमी हथियार प्रोग्राम का अघोषित सहयोगी रहा है।
खलीलजाद ने पूछा कि क्या इस समझौते में सीक्रेट क्लॉज हैं, अगर हां, तो वे क्या हैं? क्या ये समझौता बताता है कि सऊदी अरब अब अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता है।
उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार और ऐसे मिसाइल सिस्टम हैं जो पूरे मिडिल ईस्ट और इजराइल तक मार कर सकते हैं। कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि पाकिस्तान ऐसे हथियार भी डेवलप कर रहा है जो अमेरिका तक पहुंच सकते हैं।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता बोले- भारत पर असर की जांच करेंगे
सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच रक्षा समझौते पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा
यह समझौता दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद संबंधों को औपचारिक रूप देता है। इससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर क्या असर पड़ेगा, इसकी जांच की जाएगी। भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
अमेरिका के साथ भी पाकिस्तान ने सऊदी जैसा रक्षा समझौता किया था
पाकिस्तान ने सऊदी जैसा रक्षा समझौता अमेरिका के भी साथ किया था। 1979 में ये समझौता टूट गया था। उससे पहले भारत पाकिस्तान के बीच 2 जंग हुईं लेकिन एक में भी अमेरिका ने उसकी सीधे मदद नहीं की।
पाकिस्तान-अमेरिका का पुराना रक्षा समझौता: 1950 में कोल्ड वॉर के दौरान, अमेरिका ने सोवियत संघ के विस्तार को रोकने के लिए दक्षिण एशिया में सहयोगियों की तलाश की। इस समय पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ सैन्य गठबंधन को अपनाया।
- म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एग्रीमेंट (MDAA), 19 मई 1954: यह पाकिस्तान और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय समझौता था। इसमें म्यूचुअल डिफेंस के नियम थे, यानी दोनों देश एक-दूसरे को सैन्य सहायता (हथियार, प्रशिक्षण, उपकरण) देंगे। अमेरिका ने पाकिस्तान को सामूहिक सुरक्षा प्रयासों (जैसे सामान्य जंग में) में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसमें पाकिस्तान के रिसोर्स, सैनिक और रणनीतिक सुविधाएं शामिल थीं। यह समझौता अमेरिका के म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एक्ट (1949) पर बेस्ड था, जो यूरोप और एशिया में सहयोगियों को सैन्य सहायता देता था।
- SEATO (1954) और CENTO (1955): MDAA के बाद पाकिस्तान ने साउथ ईस्ट एशिया ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (SEATO) और बगदाद पैक्ट (बाद में CENTO) में शामिल होकर इसे मजबूत किया। इन संगठनों के अनुच्छेदों में किसी एक पर हमले में सामूहिक प्रतिक्रिया का प्रावधान था, यानी एक सदस्य पर आक्रमण को सभी पर आक्रमण माना जाएगा (नाटो जैसा)। अमेरिका ने इनके तहत पाकिस्तान को 7 हजार करोड़ से ज्यादा की सैन्य सहायता दी, जिसमें हथियार और प्रशिक्षण शामिल थे।
1979 में समझौता क्यों टूटा?
CENTO का अंत 1979 में हुआ, हालांकि MDAA द्विपक्षीय था, लेकिन CENTO के ढांचे से जुड़ा था।
- ईरान की क्रांति (1979): ईरान के शाह का पतन और इस्लामी क्रांति के बाद ईरान ने CENTO से 15 मार्च 1979 को वापसी की। ईरान CENTO का प्रमुख सदस्य था, इसलिए संगठन कमजोर हो गया।
- पाकिस्तान की वापसी: 12 मार्च 1979 को पाकिस्तान ने भी CENTO छोड़ दिया। इसके कारण थे सोवियत आक्रमण, अफगानिस्तान (दिसंबर 1979) के बाद पाकिस्तान की गुटनिरपेक्ष नीति और अमेरिका के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव (जैसे 1979 में पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर अमेरिकी प्रतिबंध)।
- अमेरिकी सहायता पर प्रतिबंध: जिमी कार्टर प्रशासन ने पाकिस्तान के गुप्त यूरेनियम एनरिचमेंट (न्यूक्लियर हथियार कार्यक्रम) पर 1979 में सैन्य सहायता रोक दी। इससे गठबंधन प्रभावी रूप से खत्म हो गया।
समझौते के बाद भी अमेरिका ने मदद नहीं दी
CENTO 16 मार्च 1979 को पूरी तरह खत्म हुआ। हालांकि, अमेरिका-पाकिस्तान संबंध बाद में अफगान युद्ध (1979 के बाद) में फिर मजबूत हुए, लेकिन पुराना म्यूचुअल डिफेंस फ्रेमवर्क टूट चुका था।
इससे पहले 1947, 1965 और 1971 में भारत पाक जंग में भी में अमेरिका ने पाकिस्तान की सीधी सैन्य मदद नहीं की, भले ही म्यूचुअल डिफेंस प्रावधान थे। अमेरिका ने इन जंग को क्षेत्रीय विवाद माना, न कि गठबंधन के तहत सामूहिक रक्षा का मामला।
MDAA/SEATO/CENTO खासतौर पर सोवियत/कम्युनिस्ट खतरों के खिलाफ थे, न कि भारत किसी और गुट के खिलाफ। इसलिए, पाकिस्तान को अपेक्षित मदद नहीं मिली, जिससे गठबंधन पर सवाल उठे।
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ट्रायल सफल! दुनिया का पहला कानून ऑस्ट्रेलिया में हो रहा लागू, 16 साल से कम बच्चों के SM अकाउंट होंगे बंद, लगेगा मोटा जुर्माना
Published
3 days agoon
September 16, 2025By
Divya Akash
कैनेबरा,एजेंसी।ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया में पहली बार 16 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया (SM) अकाउंट्स पर बैन लागू करने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। सरकार ने मंगलवार को टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए गाइडलाइन जारी की, ताकि 10 दिसंबर से लागू होने वाले इस कानून को सही तरीके से लागू किया जा सके।
क्या होगा नया नियम
- सोशल मीडिया कंपनियों को 16 साल से कम उम्र के बच्चों के मौजूदा अकाउंट्स खोजकर बंद करने होंगे।
- बच्चों के अकाउंट बंद होने के बाद उन्हें तुरंत नया अकाउंट बनाने से रोकने के लिए भी कंपनियों को कदम उठाने होंगे।
- हर यूज़र की उम्र जांचना ज़रूरी नहीं होगा और न ही सरकार किसी विशेष तकनीक का इस्तेमाल अनिवार्य करेगी।
- लेकिन कंपनियों को यह बताना होगा कि वे बैन लागू करने के लिए कौन-से उपाय कर रही हैं और विवाद की स्थिति में समाधान की प्रक्रिया उपलब्ध करानी होगी।
- सख्त जुर्माना
- अगर कोई कंपनी इस कानून को लागू करने के लिए “उचित कदम” नहीं उठाती है, तो उसे 49.5 मिलियन ऑस्ट्रेलियन डॉलर (लगभग 33 मिलियन अमेरिकी डॉलर) तक का जुर्माना भरना पड़ेगा। सरकार के संचार मंत्री एनीका वेल्स ने कहा-“हम तुरंत पूरी तरह सही नतीजे की उम्मीद नहीं कर रहे। यह दुनिया का पहला ऐसा कानून है, लेकिन हम वाजिब कदमों के ज़रिए बदलाव लाना चाहते हैं, ताकि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित हो।”
- ट्रायल में सफलता
- ऑस्ट्रेलिया की ई-सेफ्टी कमिश्नर जूली इनमैन ग्रांट ने भी माना कि कंपनियों को नई तकनीक और सिस्टम बनाने में समय लगेगा। शुरुआती दिनों में उनका ध्यान उन प्लेटफॉर्म्स पर होगा, जो सिस्टम लागू करने में नाकाम साबित होंगे।सरकार ने अगस्त 2025 में एक ट्रायल किया था, जिसमें पाया गया कि एज-अश्योरेंस टेक्नोलॉजी (उम्र सत्यापन तकनीक) बच्चों की उम्र की सही पहचान करने और नियम लागू करने में काफी प्रभावी साबित हो सकती है।


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