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संपादकीय

व्यक्तिगत लक्ष्य निर्धारण के लिए बच्चों को छोड़ दें स्वतंत्र

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अभिभावक अपने बच्चों को बेहतर और कामयाब इंसान बनाने के लिए बचपन से ही उन पर पूरा फोकस करे। बचपन से ही उन्हें अच्छा करने के लिए प्रेरित करें। प्राथमिक कक्षा में एडमिशन के साथ ही पुस्तकीय ज्ञान के साथ लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना सीखाएं। छोटी-छोटी बातों में आगे चलकर बड़ा संदेश निकलता है। जैसे खाना खाते समय यदि उसके छोटे दोस्त घर पर पहुंचते हैं, तो उन्हें भी साथ में बैठने के लिए पैरेंट्स बच्चों को समझाएं, इससे लोगों के प्रति बच्चे का प्रेम बढ़ेगा और सामुदायिक जीवन जीने के लिए प्रेरित होगा। इसके अलावा भाई-बहनों के साथ कुछ समय के लिए गपशप करने दें, एक साथ भाई-बहनों, दोस्तों के साथ खेलने दें, आसपास घूमने दें, पढ़ाई करने दें। इस तरह का माहौल मिलने से बच्चे सामुदायिक जीवन को अपनाएंगे और मन में सद्भाव बढ़ेगा।
अच्छी पढ़ाई के साथ बच्चे को सफल इंसान तो बना सकते हैं, लेकिन बेहतर इंसान बनाने के लिए अभिभावकों को भी बच्चों के सामने एक आदर्श पैरेंट्स की भूमिका निभानी होगी। पैरेंट्स को भी सामुदायिक एवं रचनात्मक कार्यों में लगा देख कर बच्चे भी अपने अभिभावक से सीखेंगे कि परिवार के साथ-साथ दूसरों को लाभ पहुंचाने के लिए किस तरह कार्य किया जा सकता है। यह ध्यान रहे कि बच्चों का रोल मॉडल उसके अपने माता-पिता ही होते हैं। समाज में आपकी जिस तरह से एक्टिविटी होगी, वैसा ही बालक सीखेगा।
लक्ष्य निर्धारण के लिए स्वतंत्र छोड़ दें
जब बालक किशोरवय अवस्था में पहुंचता है और मीडिल-हाई स्कूल में एंट्री करता है तो वह अपना अच्छा व बुरा समझने लगता है और उसके मन में ब्याकुलता आती है कि वह आगे चलकर क्या बनेगा? किस क्षेत्र में वह अपना कैरियर बनाएगा। लक्ष्य निर्धारण के लिए पैरेंट्स अपने बच्चों पर ज्यादा दबाव न डालें और उन्हें लक्ष्य निर्धारण के लिए स्वतंत्र छोड़ दें। इस बात पर अभिभावक जरूर ध्यान दें कि बचपन से अब तक बच्चे को किस विषय पर रूचि है और उस विषय को लेकर पैरेंट्स अपने बच्चों का प्रोत्साहन बढ़ाएं, ताकि बच्चों को लक्ष्य निर्धारण के लिए ऊहापोह की स्थिति निर्मित न हो और वह आसानी से अपने रूचिकर विषय की ओर आगे बढ़ सके और इसी विषय को लेकर वह अपना कैरियर गढऩे के लिए स्वतंत्र मस्तिष्क से लक्ष्य निर्धारण कर सके। आप बच्चों को लक्ष्य निर्धारिण के लिए स्वतंत्र छोड़ दें और आप देखेंगे कि बच्चा किस तरह से अपने कैरियर के प्रति गंभीर होकर आगे बढ़ रहा है।
समूह में रहना सिखाएं
आज भौतिक युग में एकल परिवार की संख्या बढ़ती जा रही है और इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। एकल परिवार में अधिकतर माता-पिता नौकरी पेशा वाले होते हैं और अपने बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते, जिसके कारण बच्चे उद्दण्ड और गलत संगति में पडक़र भटकाव की स्थिति में आ जाते हैं और उनका कैरियर बर्बाद हो जाता है। यदि आप एकल परिवार में जी रहे हैं, तो भी बच्चों के लिए समय अवश्य निकालें और रिश्तेदारों के साथ घुलमिलकर रहना सिखाएं। सामुदायिक जीवन से बच्चों का मानसिक स्थिति बेहतर बनती है।

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विशेष लेख

सर्वमान्य नेता, जिनके नेतृत्व में भारत खुशहाल हुआ, सक्षम हुआ

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भारत रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी: 16 अगस्त: 07वीं पूण्यतिथि पर विशेष
जन्म- 25 दिसम्बर 1924
निधन- 16 अगस्त 2018
11 मई 1998 को भारत के लिए ऐतिहासिक दिन था। अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने प्रधानमंत्रीत्व काल में ऐतिहासिक कदम उठाया और पोखरण में तीन धमाके के साथ परमाणु परीक्षण कर दुनिया को दिखा दिया… कि हम भी अपने राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सक्षम हैं। अमेरिका की खुफिया एजेंसियां हाथ मलते रह गई और अमेरिका भौंचक। परमाणु परीक्षण होने के बाद अटल जी की मिशन शक्ति ने अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया।
अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिया। अटल जी का जवाब था-ना हम झूकेंगे… ना डरेंगे। हम सक्षम हैं-अमेरिका प्रतिबंध लगा दे या रिश्ता तोड़ दे। हम सभी मामलों में सक्षम हैं। आज भारत के पास 5 हजार किलोमीटर रेंज वाली बलिस्टिक मिसाईलें हैं, सबमरीन हैं। 3 हजार किलोमीटर रेंज की के-4 सबमरीन बेस्ड मिसाईल सिस्टम है और भारत अपनी अखण्डता और सुरक्षा के लिए सक्षम है। हम अपने दुश्मनों को मारने में भी सक्षम हैं।
परमाणु परीक्षण कर अटल जी ने देश-दुनिया को संदेश दिया- यह नया भारत है और अब हम किसी भी प्रतिबंध से ना डिगने वाले, ना पीछे हटने वाले। ना हम झूके हैं… ना झूकेंगे।
अटल जी भारत के ही नहीं, बल्कि दुनिया के ताकतवर राष्ट्र प्रमुखों में सर्वमान्य नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई और दुनिया को हिन्दी की ताकत भी समझाई। अटल जी भारत के वे रत्न थे, जिन्होंने अपने कार्यकाल में भारत को सशक्त और सक्षम बनाया। अटल जी के नेतृत्व को देश ने सराहा और उनके कार्यकाल को स्वर्णीम काल के नाम से जाना जाने लगा।
7 साल पूर्व अटल जी इस दुनिया को अलविदा कह गए। उन्होंने मौत को भी चुनौती देने के लिए एक कविता रची… जो विश्व विख्यात बन गई।
पढ़ें उनकी यह खास कविता
मौत से ठन गई…
जुझने का मेरा ईरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे, इसका वादा न था।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं।
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं।
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ।
सामने वार कर, फिर मुझे आजमा।

अटल जी को सम्मान में देशवासियों ने न जाने क्या-क्या नाम दिया। युग पुरूष, भारत मां के सच्चे सपूत, राष्ट्र पुरूष, राष्ट्र मार्गदर्शक, भारत रत्न। वे सच्चे अर्थों में एक ऐसा राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने भारतीय राजनीति से द्वेष को मिटाने का काम किया। आज राजनीति में कहीं भी सात्विकता नहीं दिखती। अटल जी जब विपक्ष में थे, तो तत्समय के प्रधानमंत्री पी व्ही नरसिम्हा राव थे और दोनों की जुगलबंदी से राष्ट्र को नई दिशा मिली। वे एक-दूसरे को गुरू कह कर पुकारते थे। राजनीति में ऐसे दो विपरीत धु्रव शायद आज की राजनीति में दिखाई न दे। आज राजनीति फिर से कलुषित हो गई है और अटल जी का मार्ग शायद आज के राजनेता भूल गए हैं।
अटल जी का वह स्वर्णीम काल जब सभी धर्म के लोग खुशहाल और समभाव जीवन व्यतीत कर रहे थे। शायद आज भारतवासी उस काल को याद कर अपने आपको सांत्वना दे रहे होंगे। अटल जी प्रधानमंत्री के रूप में अपना सर्वश्रेष्ठ भारत को दिया और सबसे बड़ी बात वे एक अच्छे इंसान भी थे। स्पष्ट वक्ता होने के कारण उनकी लोकप्रियता भारत में ऐसी बढ़ी, कि वे सर्वमान्य नेता के रूप में आम जनता के साथ सभी दलों के लिए लोकप्रिय थे।
वे एक ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने कभी भी किसी से दुर्व्यहार नहीं किया और न ही किसी के उपर व्यक्तिगत लांछन लगाया। वे सच्चे अर्थों में मां भारती के लाडले सपूत थे, जो बच्चों, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों के बीच अतिलोकप्रिय थे।
देश का हर युवा, बच्चा उन्हें अपना आदर्श मानता था। आजीवन अविवाहित रह कर मां भारती की सेवा करते रहे और उन्होंने अपनी अंतिम सांस भी मां को समर्पित कर दिया। चंूकि वे आजीवन अविवाहित रहे, जिसके कारण उनकी संतान नहीं थी, लेकिन पूरे भारतवासी उनके संतान बन गए और उन्होंने भारत की हर संतान को खुशहाल बनाने की दृढ़ प्रतिज्ञा लेकर भारत को आगे ऊंचाईयों तक ले जाने के लिए प्रयास करते रहे और लोगों को पहली बार लगा कि भारत में सुशासन की स्थापना हुई है।
उनके कार्यों के बदौलत ही उन्हें भारत के ढांचागत विकास का दूरदृष्टा कहा जाता है। विरोधियों का भी दिल जीतने की ताकत अटल जी में थी और वे जब तक जीए, बेदाग रहे। उनका पूरा जीवन सार्वजनिक था और वे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को सर्वोपरी माना, तभी तो उन्हें राष्ट्रपुरूष का भी दर्जा दिया गया। अटल जी की बातें और विचार हमेशा तर्कपूर्ण रहते थे और जब वे विपक्ष में रहकर सत्तापक्ष को घेरते, तो बड़े-बड़े राजनेता और मंत्री स्तब्ध रह जाते थे। यहां तक कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू भी अटल जी की बातों को ध्यान से सुना करते थे। जब अटल जी बोलते थे, तो लगता था कि वे राष्ट्र के बारे में बोल रहे हैं, जहां पर राजनीतिक द्वेष का नामोनिशान नहीं रहता। उन्होंने संसद में जब भी बहस की, प्रधानमंत्री से लेकर विधायक तक उनकी बातों को गौर किया और जब अटल जी बोलते तो पूरे सदन में एक ही आवाज गूंजती थी, वह आवाज रहती अटल जी की। 25 दिसम्बर 1924 को भारत में एक ऐसे महापुरूष का जन्म हुआ, जो कालांतर में अटल बिहारी बाजपेयी के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुआ। इस युगपुरूष के पिता पं. कृष्ण बिहारी बाजपेयी और माता कृष्णा बाजपेयी धन्य हुए, जिन्होंने इस मां भारती के सच्चे सेवक को जन्म दिया। संघ प्रचारक से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर करने वाले इस भारत रत्न को 16 अगस्त को देश फिर याद करेगा और उनके सुशासन को भी याद करेगा। ग्वालियर में जन्में अटल जी की बीए तक की शिक्षा ग्वालियर के वर्तमान लक्ष्मीबाई कालेज में पूरी हुई। कानपुर के डीएव्ही कालेज से उन्होंने कला में स्नातकोत्तर की उपाधि प्रथम श्रेणी में पास की। वे राजनीति के सविनय सूरज थे, जिनकी उष्मा और राष्ट्रभक्ति से वर्षों तक भारत को राजनीति का स्वर्णीम काल मिला।
सम्पादक की कलम से…

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संपादकीय

हिन्दी से समृद्ध भारत का हर कोना

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हिन्दी को कुर्सी के लिए विवादित नहीं बनानी चाहिए। देश के प्रख्यात अभिनेता एवं मोटिवेटर आशुतोष राणा ने कितनी अच्छी बात कही है- हिन्दी भाषा संवाद का विषय है, ना कि विवाद का। यदि इस गहन और प्रेरणास्पद संदेश को हर भारतीय समझ ले, तो यह देश के हर कोने में अपनी मिठास छोड़ेगी और एकता में पिरोएगी भी। हिन्दी वह भाषा है, जिसमें संवाद है, मिठास है, व्यवहार है और रिश्तों की प्रगाढ़ता है। प्रधानमंत्री मोदी ने मेडिकल जैसे कोर्स के लिए भी हिन्दी की अनिवार्यता को देश में लागू कर दिया, यह हिन्दी के लिए सर्वोच्च सम्मान जैसी पहल है। हिन्दी को देश में जब तक सर्वव्यापी समर्थन नहीं मिलेगा यह विश्व की भाषा कैसे बनेगी। हिन्दी को विश्वव्यापी बनाने के लिए भारत में हिन्दी को लेकर कहीं भी भाषा विवाद नहीं होना चाहिए। क्षेत्रीय भाषा का भी सम्मान होना चाहिए, यह हमारी बोल-चाल की भाषा प्रदेश स्तर तक ही सीमित रहती है, लेकिन हिन्दी बोलने वालों को किसी भी राज्य में अपमानित करना हिन्दी भाषा का अपमान है। भारत में हर कोई अपनी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा बोलने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन किसी भी दिगर प्रांत के लोगों को किसी अन्य राज्य की मातृभाषा के लिए थोपना उचित नहीं है। महाराष्ट्र में विपक्ष और साऊथ में सत्तासीन के लोगों द्वारा अपनी मातृभाषा को थोपना कहां तक उचित है। गैर हिन्दी भाषी और हिन्दी भाषी इसी देश के नागरिक हैं और भाषा को सद्भाव का विषय बनाना चाहिए, ना कि विवाद का। हिन्दी भाषा जब भारत में सर्वमान्य होगी, तो ही इसे विश्वव्यापी बनाने का रास्ता खुलेगा।
हिन्दी वह भाषा है, जो हिन्दुस्तान का दर्पण है। हिन्दी, हिन्दुस्तान की आत्मा है। हिन्दुस्तान से उसकी आत्मा को अलग करना एक प्रकार से राष्ट्रद्रोह है। हिन्दी को किसी भी हालत में देश में सर्वमान्य बनाकर हमें इसे सार्वभौमिक बनाने के लिए प्रयास करना होगा।

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कोरबा

गर्मी की छुट्टी में भी अध्ययन बंद ना हो

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भीषण गर्मी को देखते हुए राज्य शासन ने नियत समय से पहले स्कूल से बच्चों को अवकाश दे दिया। अब गर्मी के अवकाश में बच्चे मस्ती करेंगे, घूमेंगे-फिरेंगे और मोबाईल में समय बीताएंगे। अवकाश का मतलब पढ़ाई से छुट्टी नहीं होता, बल्कि घर में रहकर कुछ घंटे के लिए पढ़ाई का भी होता है। विद्यालय में आज पढ़ाई का बोझ कुछ ज्यादा ही होता है, जिसके कारण 10 माह स्कूल की पढ़ाई, घर का होमवर्क, ऊपर से अभिभावकों के दबाव के कारण दो-तीन घंटे तक ट्यूशन की पढ़ाई…ऊफ! सिर्फ 10 महीने तक पढ़ाई ही पढ़ाई… यहां तक के लिए बच्चों के पास खेलने का समय भी नहीं निकल पाता। इतना स्ट्रैस… विद्यार्थी जीवन के लिए ठीक नहीं। बच्चे पढ़ाई को उत्सव के रूप में लें… ना कि स्टै्रस। विद्यार्थी जीवन का मजा तभी है, जब पढ़ाई के लिए कड़े संघर्षों के साथ-साथ पर्याप्त खेलने का भी वक्त मिले। बच्चे गर्मी की छुट्टी में पूरा समय खेलने में बीता देते हैं और पुस्तक से कोसों दूर चले जाते हैं, यह भी ठीक नहीं।
गर्मी की छुट्टी में मस्ती करें, खेलें, रिश्तेदारों के घर घूमें-फिरें लेकिन वक्त का तकाजा है कि पुस्तक से दूर कभी ना हों। विद्यालयीन पुस्तकों का अध्ययन कुछ घंटे जरूर करें और गर्मी की छुट्टी में समान्य ज्ञान, कौशल विकास, व्यक्तित्व विकास, सामाजिक विकास, प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकें अवश्य पढ़ें। मस्तिष्क को तरोजाता करने के लिए मनोरंजक पुस्तकों का अध्ययन करना बेहतर होगा। पुस्तक हमारे सच्चे मित्र होती हैं और सच्चे मित्र का सानिध्य निरंतर जीवन में मिलता रहे, तो जीवन सरल होता है और समस्याओं का समाधान भी मिलता है। पुस्तक हमें सबकुछ सीखाती हैं। जीवन जीने की कला, जीवन में अनुशासन, बड़ों और छोटों के साथ व्यवहार करना, जीवन में सामाजिक कार्यों का महत्व, सेवा का महत्व, परिवार का महत्व… और ना जाने जीवन में क्या-क्या सीखा जाती हैं पुस्तकें। पुस्तकों का साथ… मायने … जीवन में सुख-समृद्धि-सफलता। इति

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