विशेष लेख
सर्वमान्य नेता, जिनके नेतृत्व में भारत खुशहाल हुआ, सक्षम हुआ
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2 months agoon
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Divya Akash
भारत रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी: 16 अगस्त: 07वीं पूण्यतिथि पर विशेष
जन्म- 25 दिसम्बर 1924
निधन- 16 अगस्त 2018
11 मई 1998 को भारत के लिए ऐतिहासिक दिन था। अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने प्रधानमंत्रीत्व काल में ऐतिहासिक कदम उठाया और पोखरण में तीन धमाके के साथ परमाणु परीक्षण कर दुनिया को दिखा दिया… कि हम भी अपने राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सक्षम हैं। अमेरिका की खुफिया एजेंसियां हाथ मलते रह गई और अमेरिका भौंचक। परमाणु परीक्षण होने के बाद अटल जी की मिशन शक्ति ने अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया।
अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिया। अटल जी का जवाब था-ना हम झूकेंगे… ना डरेंगे। हम सक्षम हैं-अमेरिका प्रतिबंध लगा दे या रिश्ता तोड़ दे। हम सभी मामलों में सक्षम हैं। आज भारत के पास 5 हजार किलोमीटर रेंज वाली बलिस्टिक मिसाईलें हैं, सबमरीन हैं। 3 हजार किलोमीटर रेंज की के-4 सबमरीन बेस्ड मिसाईल सिस्टम है और भारत अपनी अखण्डता और सुरक्षा के लिए सक्षम है। हम अपने दुश्मनों को मारने में भी सक्षम हैं।
परमाणु परीक्षण कर अटल जी ने देश-दुनिया को संदेश दिया- यह नया भारत है और अब हम किसी भी प्रतिबंध से ना डिगने वाले, ना पीछे हटने वाले। ना हम झूके हैं… ना झूकेंगे।
अटल जी भारत के ही नहीं, बल्कि दुनिया के ताकतवर राष्ट्र प्रमुखों में सर्वमान्य नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई और दुनिया को हिन्दी की ताकत भी समझाई। अटल जी भारत के वे रत्न थे, जिन्होंने अपने कार्यकाल में भारत को सशक्त और सक्षम बनाया। अटल जी के नेतृत्व को देश ने सराहा और उनके कार्यकाल को स्वर्णीम काल के नाम से जाना जाने लगा।
7 साल पूर्व अटल जी इस दुनिया को अलविदा कह गए। उन्होंने मौत को भी चुनौती देने के लिए एक कविता रची… जो विश्व विख्यात बन गई।
पढ़ें उनकी यह खास कविता
मौत से ठन गई…
जुझने का मेरा ईरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे, इसका वादा न था।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं।
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं।
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ।
सामने वार कर, फिर मुझे आजमा।
अटल जी को सम्मान में देशवासियों ने न जाने क्या-क्या नाम दिया। युग पुरूष, भारत मां के सच्चे सपूत, राष्ट्र पुरूष, राष्ट्र मार्गदर्शक, भारत रत्न। वे सच्चे अर्थों में एक ऐसा राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने भारतीय राजनीति से द्वेष को मिटाने का काम किया। आज राजनीति में कहीं भी सात्विकता नहीं दिखती। अटल जी जब विपक्ष में थे, तो तत्समय के प्रधानमंत्री पी व्ही नरसिम्हा राव थे और दोनों की जुगलबंदी से राष्ट्र को नई दिशा मिली। वे एक-दूसरे को गुरू कह कर पुकारते थे। राजनीति में ऐसे दो विपरीत धु्रव शायद आज की राजनीति में दिखाई न दे। आज राजनीति फिर से कलुषित हो गई है और अटल जी का मार्ग शायद आज के राजनेता भूल गए हैं।
अटल जी का वह स्वर्णीम काल जब सभी धर्म के लोग खुशहाल और समभाव जीवन व्यतीत कर रहे थे। शायद आज भारतवासी उस काल को याद कर अपने आपको सांत्वना दे रहे होंगे। अटल जी प्रधानमंत्री के रूप में अपना सर्वश्रेष्ठ भारत को दिया और सबसे बड़ी बात वे एक अच्छे इंसान भी थे। स्पष्ट वक्ता होने के कारण उनकी लोकप्रियता भारत में ऐसी बढ़ी, कि वे सर्वमान्य नेता के रूप में आम जनता के साथ सभी दलों के लिए लोकप्रिय थे।
वे एक ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने कभी भी किसी से दुर्व्यहार नहीं किया और न ही किसी के उपर व्यक्तिगत लांछन लगाया। वे सच्चे अर्थों में मां भारती के लाडले सपूत थे, जो बच्चों, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों के बीच अतिलोकप्रिय थे।
देश का हर युवा, बच्चा उन्हें अपना आदर्श मानता था। आजीवन अविवाहित रह कर मां भारती की सेवा करते रहे और उन्होंने अपनी अंतिम सांस भी मां को समर्पित कर दिया। चंूकि वे आजीवन अविवाहित रहे, जिसके कारण उनकी संतान नहीं थी, लेकिन पूरे भारतवासी उनके संतान बन गए और उन्होंने भारत की हर संतान को खुशहाल बनाने की दृढ़ प्रतिज्ञा लेकर भारत को आगे ऊंचाईयों तक ले जाने के लिए प्रयास करते रहे और लोगों को पहली बार लगा कि भारत में सुशासन की स्थापना हुई है।
उनके कार्यों के बदौलत ही उन्हें भारत के ढांचागत विकास का दूरदृष्टा कहा जाता है। विरोधियों का भी दिल जीतने की ताकत अटल जी में थी और वे जब तक जीए, बेदाग रहे। उनका पूरा जीवन सार्वजनिक था और वे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को सर्वोपरी माना, तभी तो उन्हें राष्ट्रपुरूष का भी दर्जा दिया गया। अटल जी की बातें और विचार हमेशा तर्कपूर्ण रहते थे और जब वे विपक्ष में रहकर सत्तापक्ष को घेरते, तो बड़े-बड़े राजनेता और मंत्री स्तब्ध रह जाते थे। यहां तक कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू भी अटल जी की बातों को ध्यान से सुना करते थे। जब अटल जी बोलते थे, तो लगता था कि वे राष्ट्र के बारे में बोल रहे हैं, जहां पर राजनीतिक द्वेष का नामोनिशान नहीं रहता। उन्होंने संसद में जब भी बहस की, प्रधानमंत्री से लेकर विधायक तक उनकी बातों को गौर किया और जब अटल जी बोलते तो पूरे सदन में एक ही आवाज गूंजती थी, वह आवाज रहती अटल जी की। 25 दिसम्बर 1924 को भारत में एक ऐसे महापुरूष का जन्म हुआ, जो कालांतर में अटल बिहारी बाजपेयी के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुआ। इस युगपुरूष के पिता पं. कृष्ण बिहारी बाजपेयी और माता कृष्णा बाजपेयी धन्य हुए, जिन्होंने इस मां भारती के सच्चे सेवक को जन्म दिया। संघ प्रचारक से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर करने वाले इस भारत रत्न को 16 अगस्त को देश फिर याद करेगा और उनके सुशासन को भी याद करेगा। ग्वालियर में जन्में अटल जी की बीए तक की शिक्षा ग्वालियर के वर्तमान लक्ष्मीबाई कालेज में पूरी हुई। कानपुर के डीएव्ही कालेज से उन्होंने कला में स्नातकोत्तर की उपाधि प्रथम श्रेणी में पास की। वे राजनीति के सविनय सूरज थे, जिनकी उष्मा और राष्ट्रभक्ति से वर्षों तक भारत को राजनीति का स्वर्णीम काल मिला।
सम्पादक की कलम से…
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छत्तीसगढ़
Modi@75… नरेन्द्र मोदी युगांतरकारी नेतृत्व के प्रतीक
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1 month agoon
September 17, 2025By
Divya Akash
आज नरेंद्र मोदी का नाम विश्व के शीर्ष नेताओं में गिना जाता है। टाइम और फोर्ब्स जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाएँ उन्हें दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों की सूची में शामिल करती हैं। अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान जैसे देशों के शीर्ष नेतृत्व के साथ उनके व्यक्तिगत रिश्ते भारत की कूटनीति को नई ऊँचाइयों तक ले गए हैं।
नरेंद्र मोदी आज केवल भारत के प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि वैश्विक परिदृश्य के सबसे प्रभावशाली नेताओं में गिने जाते हैं। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व भारतीय लोकतंत्र की गौरवगाथा को नई ऊँचाइयों तक ले गया है। साधारण परिवार में जन्मा एक बालक, जिसने जीवन के संघर्षों को तपस्या की तरह जिया, आज विश्व राजनीति ही नहीं, सम्पूर्ण मानवता का मार्गदर्शक बन गया है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि यदि व्यक्ति में अटूट परिश्रम, कर्मनिष्ठा और राष्ट्रनिष्ठा का अदम्य संकल्प हो, तो वह इतिहास की धारा को भी मोड़ सकता है। नरेंद्र मोदी का उदय किसी एक व्यक्ति की उपलब्धि भर नहीं है, बल्कि यह भारत की जाग्रत चेतना और आत्मविश्वास का प्रतीक है। इक्कीसवीं सदी के भाल पर अपने कर्त्तृत्व की जो अमिट रेखाएं उन्होंने खींची हैं, वे विश्व राजनीति, मानवता एवं राष्ट्रीयता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगी। राजनीति-क्रांति के साथ-साथ वे व्यक्ति-क्रांति एवं समाज-क्रांति के सूत्रधार है। उनके विराट व्यक्तित्व को किसी उपमा से उपमित करना उनके व्यक्तित्व को ससीम बनाता है। उनके लिये तो इतना ही कहा जा सकता है कि वे अनिर्वचनीय हैं। इस वर्ष उनका 75वां जन्मोत्सव मनाते हुए समूचा राष्ट्र अपूर्व गर्व और गौरव की अनुभूति कर रहा है।
मोदी का व्यक्तित्व अनेक विलक्षणताओं का समवाय है, वह कठोर परिश्रम और मिशनरी दृष्टिकोण का जीवंत उदाहरण है। उनके दिन और रात का प्रत्येक क्षण राष्ट्र के लिए समर्पित रहता है। वे चौबीस घंटे भारत के लिए जीते हैं और योजनाओं को केवल कागजों पर नहीं छोड़ते, बल्कि उन्हें धरातल पर उतारते हैं। उनका मंत्र “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास” केवल राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन को नई दिशा देने वाला दर्शन है। उन्होंने राजनीति को सत्ता की होड़ से निकालकर सेवा और राष्ट्रनिर्माण का साधन बना दिया। काल के अनंत प्रवाह में 75 वर्षों का मूल्य बहुत नगण्य होता है, पर मोदी ने उद्देश्यपूर्ण जीवन जीकर जो ऊंचाइयां और उपलब्धियां हासिल की हैं, वे किसी कल्पना की उड़ान से भी अधिक है। अपने जीवन के सार्थक प्रयत्नों से उन्होंने इस बात को सिद्ध किया है कि साधारण पुरुष वातावरण से बनते हैं, किन्तु महामानव वातावरण बनाते हैं। समय और परिस्थितियां उनका निर्माण नहीं करती, वे स्वयं समय और परिस्थितियों का निर्माण करते हैं। साधारण पुरुष जहां अवसर को खोजते रहते हैं, वहां महापुरुष नगण्य अवसरों को भी अपने कर्तृत्व की छेनी से तराश कर महान् बना देते हैं।
नरेन्द्र मोदी का जन्म एवं पालन-पोषण वडनगर, बॉम्बे राज्य (वर्तमान गुजरात) में 17 सितंबर 1950 को हुआ। जहाँ उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की। आठ साल की उम्र में उनका आरएसएस से परिचय हुआ और वे 1971 में गुजरात में संगठन के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। और 1998 में महासचिव बने। वे भारतीय राजनीति के जुझारू, कर्मठ एवं जीवट वाले नेता हैं जो 2014 से भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत हैं। मोदी 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और वाराणसी से सांसद हैं। इस वर्ष अपने 75वें जन्मदिन पर मोदी मध्य प्रदेश के धार जिले के भैंसोला गांव में रहेंगे। इस दिन प्रधानमंत्री मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड एपेरल पार्क का भूमि पूजन करेंगे। कपास आधारित उद्योगों पर आधारित यह पार्क 6 लाख किसानों को फायदा देगा। इसके अलावा स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार अभियान का शुभारंभ करेंगे, इस अभियान का उद्देश्य महिलाओं और बच्चों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत कर उनकी पहुंच को बेहतर करना, गुणवत्तापूर्वक देखभाल और जागरूकता सुनिश्चित करना है। इसके अलावा महिलाओं के लिए कई अन्य योजनाओं की भी शुरुआत होगी।
मोदी के नेतृत्व में भारत ने जिन उपलब्धियों को हासिल किया है, वे युगांतरकारी कही जा सकती हैं। आर्थिक क्षेत्र में जीएसटी, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं ने देश को नई गति दी। सामाजिक क्षेत्र में स्वच्छ भारत अभियान, उज्ज्वला योजना, जन धन योजना, आयुष्मान भारत जैसी पहल ने करोड़ों गरीबों को सम्मानजनक जीवन का आधार दिया। राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक ने भारत की नई आक्रामक और निर्णायक छवि प्रस्तुत की। इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण यह रहा कि मोदी ने भारतीय समाज में आत्मविश्वास का संचार किया और यह भावना मजबूत की कि भारत अब किसी से पीछे नहीं रहेगा। वैश्विक मंच पर नरेंद्र मोदी ने भारत की प्रतिष्ठा को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनके विचार, जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत की अध्यक्षता, कोप-26 जैसे पर्यावरण मंचों पर उनकी स्पष्ट प्रतिबद्धता, विश्व को यह संदेश देती है कि भारत अब केवल दर्शक नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाने वाला राष्ट्र है। कोविड महामारी के दौरान वैक्सीन मैत्री योजना ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत अपनी सीमाओं से परे जाकर पूरी मानवता के लिए सोचता है। यही कारण है कि आज भारत को विश्वगुरु की भूमिका निभाने वाला देश माना जाने लगा है और नरेंद्र मोदी इस नई पहचान के प्रेरक बने हैं।
मेरे लिए भी नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व केवल दूर से देखने का विषय नहीं रहा, बल्कि उनके साथ जुड़े अनेक आत्मीय अनुभव आज भी मेरे जीवन की स्मृतियों में ताज़ा है। वर्ष 2007 में जब मैं सुखी परिवार फाउंडेशन के महामंत्री के रूप में कार्य कर रहा था, तब गुजरात के आदिवासी अंचल कवांट में एक विशाल आदिवासी सम्मेलन गणि राजेन्द्र विजयजी के नेतृत्व में हमने आयोजित किया था। उस सम्मेलन में नरेंद्र मोदी स्वयं पधारे थे। उस समय वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे और कार्यक्रम में उपस्थित आदिवासी समाज की ऊर्जा और उत्साह के बीच गणि राजेन्द्र विजयजी ने बड़ी आत्मीयता से उनको कहा था-“अब आप दिल्ली चलो।” गणिजी का यह वाक्य केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी धर्मगुरु की अंतरदृष्टि थी, जो बाद में सार्थक भी हुई। गणि राजेंद्र विजयजी के प्रभाव से उस सम्मेलन में करीब डेढ़ लाख आदिवासी एकत्र हुए थे और मोदीजी ने उस सम्मेलन को जिस संवेदनशीलता और गंभीरता से संबोधित किया, वह उनकी लोकमंगलकारी दृष्टि और आदिवासी समाज के प्रति गहरी प्रतिबद्धता का प्रमाण था। मेरे लिए यह केवल एक व्यक्तिगत संस्मरण नहीं, बल्कि इस बात का साक्षात अनुभव है कि मोदीजी किस तरह जीवन के हर स्तर पर मिलने वाले लोगों और परिस्थितियों को दूरगामी दृष्टि से देखते हैं और उनमें राष्ट्र निर्माण की संभावनाएँ खोजते हैं।
मोदीजी के व्यक्तित्व का एक बड़ा पक्ष मानवीय संवेदनाओं से भरा हुआ है। चाहे गरीबों को पक्का मकान उपलब्ध कराना हो, किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम उठाना हो, बेटियों की शिक्षा और सुरक्षा को सुनिश्चित करना हो या स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएँ आम जन तक पहुँचाना हो, मोदी का हर कदम जीवन को सरल और सम्मानजनक बनाने पर केंद्रित है। वे न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन के सिद्धांत पर चलते हुए प्रशासन को अधिक सक्षम और प्रभावी बनाते हैं। उनका नेतृत्व केवल आधुनिकता और विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। उनके प्रयासों से योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का निर्णय हुआ। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, काशी विश्वनाथ धाम और केदारनाथ धाम का पुनरुद्धार उनके सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और आस्था के प्रति गहरे सम्मान को प्रकट करता है। इस प्रकार वे आधुनिक भारत और प्राचीन भारत की आत्मा के बीच एक सेतु का कार्य करते हैं।
आज नरेंद्र मोदी का नाम विश्व के शीर्ष नेताओं में गिना जाता है। टाइम और फोर्ब्स जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाएँ उन्हें दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों की सूची में शामिल करती हैं। अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान जैसे देशों के शीर्ष नेतृत्व के साथ उनके व्यक्तिगत रिश्ते भारत की कूटनीति को नई ऊँचाइयों तक ले गए हैं। आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, शांति और विकास जैसे मुद्दों पर उनकी स्पष्ट और निर्णायक आवाज़ आज पूरी दुनिया सुनती है। उनका 75वां जन्मोत्सव केवल एक व्यक्ति के जीवन का उत्सव नहीं है, बल्कि उस युगांतरकारी यात्रा का प्रतीक है जिसने भारत को नई ऊँचाइयों की ओर अग्रसर किया है। वे उस नेतृत्व के धनी हैं जिसने भारत को विश्वगुरु बनाने की दिशा में ठोस कदम बढ़ाए हैं। कठोर परिश्रम, राष्ट्रनिष्ठा और मिशनरी दृष्टि से ओतप्रोत नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति का ही नहीं, विश्व राजनीति का भी स्वर्णिम अध्याय हैं। आने वाला समय इस बात का साक्षी बनेगा कि उनका नेतृत्व न केवल एक नए भारत का निर्माण करेगा, बल्कि विश्व को भी शांति, सहयोग और विकास का नया मार्ग दिखाएगा।
– ललित गर्ग , Agency
कोरबा
नई मैडम…नया सर.. युक्ति युक्तकरण से स्कूलों में पढ़ाई हुई बेहतर
Published
2 months agoon
September 4, 2025By
Divya Akash
पहली से लेकर बारहवीं तक के रिक्त पदों में शिक्षको की पदस्थापना से बदला माहौल
दूरस्थ गाँव में शिक्षकों को भी मिलने लगा है सम्मान के साथ पहचान
विशेष लेख-कमलज्योति
वक़्त का पहिया बहुत तेजी से आगे बढ़ गया है…गाँव का वह तालाब, तालाब के किनारे का पेड़, पेड़ पर घोंसला, गांव के गौटियां के घर के पास का कुआं, कीचड़ वाले रास्ते, खपरैल वाले घर और उन घरों से ही दूर-दूर तक नजर आती खेत…खेत के मेढ़ से बस्ता टांगकर दूर तक स्कूल का सफर सहित आसपास के नजारे अब भले ही बदलाव के दौर में बदल गये हैं…. इन्हीं बदलाव में गाँव का वह स्कूल भी अब पहले जैसा नहीं रहा…भले ही कई स्कूल जहाँ संचालित थे, वहीं है लेकिन उन स्कूलों की दीवारें बदल गई है। छते बदल गई है, विद्यार्थी, शिक्षक भी बदल गए हैं..किताबें बदल गई है, ड्रेस बदल गया है…लेकिन कक्षा के भीतर मास्टरजी की सीख, बच्चों के शोर, शाला लगने और शाला से घर जाने सुनाई देने वाली घंटी की आवाजें, प्रार्थना, कतार…सबकुछ वैसा का वैसा ही तो है..। नई पहचान के साथ अब शहर से लेकर दूरस्थ गाँव तक के हर विद्यालय में क, ख, ग और ए, बी सी,डी की शोर सुनाई देती है, लेकिन यह शोर वह शोर नहीं.. जिन्हें सुनकर कान बन्द करने की नौबत आन पड़े…यह तो वह शोर है…जिसमे आने वाले भविष्य का कल छिपा है…इसे सुनकर पूरा गाँव निश्चिंत है..और खुश भी है कि उनके गांव के विद्यालय में मास्टरजी आ गये हैं। यह खुशी विद्यालयों में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों में भी है कि उन्हें नई मैडम और नया सर मिल गया है। स्कूल आने-जाने का समय हो या फिर घर में अपने भाई-बहन, माता-पिता के बीच गुजरने वाला वक्त, स्कूल की नई मैडम और नये सर का जिक्र सबकी जुबां पर है। गांव के स्कूलों में पदस्थ होने के साथ ही शिक्षकों का भी मान सम्मान बढ़ने लगा है।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के दिशा निर्देशन में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा प्रदेश भर में अपनाई गई युक्तियुक्त करण की प्रक्रिया से शहर से लेकर दूरस्थ गांव तक के सरकारी विद्यालयों मे ंपढ़ाई करने वाले गरीब विद्यार्थियों के भाग खोल दिये हैं। अतिशेष शिक्षकों के समायोजन से उन हजारों विद्यालयों को शिक्षक मिल गया है, जहां वर्षों से शिक्षक की कमी थी। प्रदेश के लगभग 6 हजार एकल शिक्षकीय विद्यालय में अतिशेष शिक्षको का समायोजन किया गया है, जिससे 4 हजार 721 विद्यालय लाभान्वित हुए है। वही युक्ति युक्तकरण से पूर्व प्रदेश भर में 453 शिक्षकविहीन विद्यालय थे। इन विद्यालयों में से 446 विद्यालयों में अतिशेष शिक्षको की पदस्थापना कर राज्य शासन ने शिक्षक की कमी से वंचित विद्यार्थियों के भविष्य को गढ़ने के साथ ही शिक्षको की गारंटी और पढ़ाई के साथ बच्चों की भविष्य भी सुनिश्चित कर दी है। कोरबा जिले में 500 से अधिक शिक्षकों को शिक्षकविहीन, एकलशिक्षकीय-द्विशिक्षकीय विद्यालयों में पदस्थ किया गया है। हाइ और हायर सेकंडरी विद्यालय के अतिशेष व्याख्याताओं को उन विद्यालयों में पदस्थ किया गया है, जहाँ गणित, रसायन, भौतिकी, हिंदी, अंग्रेजी, कामर्स विषयों के शिक्षकों की कमी थी। इससे पाठ्यक्रम भी समय पर पूरा होगा।

विद्यालयों में शिक्षक की पदस्थापना से विद्यार्थी भी खुश है। शहर से लगभग सौ किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच पंडोपारा में रहने वाले पंडो समाज गाँव में स्कूल में बनी शिक्षको की कमी से चिंतित थे, क्योंकि उनके बच्चे पाठशाला तो नियमित जाते थे, लेकिन विद्यालय में एकमात्र शिक्षक होने का खमियाजा भी बच्चों को भुगतना पड़ता था। आखिरकार जब मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के निर्देशन में ऐसे शिक्षकविहीन और एकल शिक्षकीय विद्यालयों की सुध ली गई तो युक्ति युक्तकरण जैसी व्यवस्था ने घने जंगलों में बसे पंडो जनजाति के बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने की राह आसान कर दी। पंडोपारा के ग्रामीण मंगल सिंह पंडो ने बताया कि गाँव में स्कूल में दो शिक्षक होने से क्लास में सभी बच्चों की पढ़ाई तो होगी ही, अब कोई खाली नहीं बैठेगा। इसी विद्यालय में कक्षा चौथी के छात्र जगदेश्वर पंडो, तीसरी कक्षा के राजेन्द्र और दूसरी के मुकेश पंडो को भी खुशी है कि उनके स्कूल में नए गुरुजी पढ़ाने आ रहे हैं।
कोरबा ब्लॉक के सुदूरवर्ती ग्राम सांचरबहार ग्राम पंचायत नकिया का आश्रित ग्राम है। इस विद्यालय में वर्षों से नियमित शिक्षक पदस्थ नहीं था। स्कूल खुलने के साथ ही गाँव के लोगों की आस थी कि उनके बच्चे भी सही ढंग से पढ़ाई कर पाएंगे, दुर्भाग्यवश उनकी आस अधूरी ही थी, क्योंकि नियमित शिक्षक नहीं होने का खामियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड़ता था। गाँव में रहने वाली वृद्धा मैसो बाई खुश है कि स्कूल को नियमित शिक्षक मिल गया है अब उनका नाती-नतिनी ठीक से पढ़ाई कर पाएंगे। उन्होंने बताया कि रिया और आशीष विद्यालय जाते हैं। गाँव की महिला राजकुमारी बाई ने बताया कि उनका बेटा प्रमेन्द्र स्कूल जाता है। पहले आसपास के विद्यालयों से किसी शिक्षक को स्कूल भेजकर काम चलाया जाता था। अब नियमित शिक्षक आ जाने से हम सभी खुश है कि हमारे गाँव के स्कूल और बच्चों की नई पहचान बनेगी और उनकी पढ़ाई भी आसान होगी। युक्ति युक्तकरण से इस विद्यालय में नियुक्त सहायक शिक्षक शेखरजीत टंडन ने बताया कि युक्ति युक्तकरण के काउंसिलिंग विद्यालय में अभी 11 बच्चे दर्ज है और उन्हें खुशी है कि सुदूरवर्ती गाँव सांचरबहार के विद्यार्थियों का भविष्य गढ़ने का उन्हें अवसर मिला।

करतला ब्लॉक के वनांचल क्षेत्र में स्थित छोटे से गांव तिलईडबरा में भी शिक्षा की तस्वीर अब बदलने लगी है। वर्षों से शिक्षक की कमी से जूझते शासकीय प्राथमिक शाला में अब युक्तियुक्तकरण के तहत नियमित शिक्षिका श्रीमती संगीता कंवर की पदस्थापना की गई है, जिससे गांव में शिक्षा की नई रोशनी पहुंची है। शिक्षिका संगीता कंवर ने विद्यालय में पदभार ग्रहण करने के साथ ही बच्चों को पढ़ाना प्रारंभ किया। आज वे नियमित रूप से कक्षाएं ले रही हैं और बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की भी शिक्षा दे रही है। शिक्षिका की उपस्थिति से बच्चों का मन भी पढ़ाई में मन जम रहा और वे भी अध्ययन में रुचि ले रहे।
पोड़ी उपरोड़ा विकासखंड के वनांचल क्षेत्र मांचाडोली स्थित शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में जीव विज्ञान विषय की शिक्षिका श्रीमती राजमणि टोप्पो की पदस्थापना की गई है। विद्यालय में लंबे समय से जीव विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषय की विशेषज्ञ शिक्षक की कमी महसूस की जा रही थी। 12वीं जीव विज्ञान के छात्र दीक्षांत दास मानिकपुरी ने कहा नई मैडम के आने से जीव विज्ञान विषय आसान हो गया है। पहले हम कोशिका, डीएनए, आरएनए, हार्मोन जैसे शब्दों के अर्थ को समझने में उलझे रहते थे। अब शरीर की बनावट, शारीरिक अंगों के क्रियाकलाप को बेहतर समझ पा रहे है। पादप, जंतु और सूक्ष्म जीवों के सरंचनाओं की समझ बढ़ी है। अब हम उन्हें समझने की कोशिश करते हैं। विषय विशेषज्ञ शिक्षिका के आने से कक्षा की सोच बदल गई है। अब हम सभी डॉक्टर, वैज्ञानिक बनने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं।

इसी क्रम में ग्राम पचरा में संचालित हाई स्कूल में भी शिक्षको की कमी बनी हुई थी। विद्यालय में कक्षा नवमीं में 48 और कक्षा 10वीं में 25 विद्यार्थी है। विद्यालय में अध्ययन करने वाली छात्राओं विद्या, मानमती, सुहानी यादव ने बताया कि गांव के विद्यार्थियों को गणित, अंग्रेजी विषय थोड़ा कठिन लगता है, गणित के शिक्षक पहले से हैं, अब हमारे स्कूल में अंग्रेजी के सर आ गए हैं। स्कूल में बहुत दूर-दूर के गाँव से लड़के-लड़कियां पढ़ाई करने आती है। सभी विषयों की पढ़ाई होने से हम लोग का मन भी स्कूल आने में होता है। यहां अंग्रेजी विषय में युक्तियुक्तकरण से गोपाल प्रसाद भारद्वाज पदस्थ हुए हैं। इसी तरह कोरबा ब्लॉक के चचिया में हायर सेकेण्डरी स्कूल में गणित और करतला के ग्राम केरवाद्वारी में भौतिक विषय की शिक्षिका पदस्थ हुई है। विद्यार्थियों को कठिन सा विषय लगने वाले गणित, भौतिक, अंग्रेजी सहित अन्य विषयों के व्याख्याता मिल जाने से विद्यार्थी बहुत खुश है।
मानदेय शिक्षक भी निभा रहे महत्वपूर्ण भूमिका
जिले में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के निर्देश पर कलेक्टर अजीत वसन्त द्वारा डीएमएफ से मानदेय शिक्षको की नियुक्ति अनेक विद्यालयों में की गई है। जिले के प्राइमरी स्कूल में 243,मिडिल स्कूल में 109 और हायर सेकंडरी स्कूल में 120 शिक्षको को मानदेय पर रखा गया है। ये शिक्षक विद्यार्थियों को पढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। इन्हें विद्यालयों में शिक्षकों की कमी वाले स्कूलों में पदस्थ किया गया है। इसके अतिरिक्त संविदा से नियुक्त शिक्षक भी अध्यापन करा रहे हैं।
स्कूल भवनों सहित अन्य सुविधाओं पर भी दिया जा रहा है ध्यान
जिले के जर्जर विद्यालयों को मरम्मत के साथ ही आवश्यकता वाले स्थानों पर नवीन विद्यालय भवन, किचन शेड, टॉयलेट, बाउंड्रीवाल, साइकिल स्टैंड, न्यूज़ पेपर स्टैंड सहित अन्य सुविधाओं के लिए कलेक्टर श्री अजीत वसंत द्वारा खनिज संस्थान न्यास मद से स्वीकृति प्रदान की गई है। स्कूलों में भृत्य के रिक्त पदों पर मानदेय में 310 युवाओं को रोजगार प्रदान किया गया है। खास बात यह भी है कि जिले के विशेष पिछड़ी जनजाति परिवार से संबंधित युवाओं को उनकी योग्यता के आधार पर शिक्षक और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर नियुक्त किया गया है। स्कूली विद्यार्थियों के लिए नाश्ते का वितरण और प्रतिभावान विद्यार्थियों को नीट, जेईई सहित अन्य में प्रवेश के लिए निःशुल्क कोचिंग की व्यवस्था ने जिले में शैक्षणिक माहौल कायम किया है।

कोरबा
गोंडवाना जनजातियों के गौरवशाली इतिहास का जीता जागता सबूत बूढ़ातालाब
Published
3 months agoon
August 2, 2025By
Divya Akash
विश्व आदिवासी दिवस (09 अगस्त) पर विशेष लेख
जनजातीय समाज के पुर्खालपेन बुढ़ालपेन बूढ़ादेव के नाम से रायपुर शहर के बीचों-बीच स्थित बूढ़ातालाब से कई यादें जुड़ी हुई हैं, जो अभी भी शोध का विषय है। यह तालाब 600 साल पुराना है। 13वीं-14वीं शताब्दी के बीच तिरूमाल राजा रायसिंह जगत ने इसे खुदवाया था। राजा रायसिंह अपनी सेना लेकर चॉदा और लॉजी राज्य होते हुए खारून नदी पहुंचे थे। उनके साथ चलने वाली 3000महिला और 4000पुरूषों ने मिलकर छ: महीने में 12 एकड़ जमीन को खोदकर बूढ़ातालाब का निर्माण कराया था। तालाब खुदाई के कार्य में हाथी, बैल आदि पशुओं का एवं कृषि औजारों का उपयोग किया गया था।

राजा ने इसी तालाब के किनारे रयपुर नामक नगर बसाया, जो अब रायपुर के नाम से जाना पहचाना जाता है। तालाब में 1402 शिलालेख मिले थे, जिसमें रायपुर और तालाब से जुड़ी जानकारी लिखी है। बूढ़ादेव तालाब के बीच में एक टापू है। इसी टापू पर बूढ़ादेव का प्रतीक स्थापित है। इस टापू तक जाने के लिए रोड बना हुआ है।

कंकालीन तालाब
बूढ़ातालाब के साथ एक और छोटा तालाब कंकालीन तालाब भी बनवाया गया था। बूढ़ातालाब और कंकालीन तालाब की दूरी लगभग 1 किमी है। कुंड नुमा कंकालीन तालाब अभी भी अस्तित्व में है। इसके बीचों-बीच एक छोटा सा कंकालीन दाई का पेन ठाना है, जिसमें पहले गोन्ड समाज का सेवईक हुआ करता था। कंकालीन तालाब के तल से बुढ़ा तालाब का जलस्तर कंकालीन तालाब के जलस्तर को प्रभावित करता था। इसे जोड़ने के लिए एक आंतरिक सुरंग है। सुरंग में बेशुमार संपत्ति रखे जाने की बात भी कही गई है। अंग्रेजी हुकूमत ने इस सुरंग को खोजने का बहुत प्रयास किया। सुरंग का कपाट कंकालीन तालाब में स्थित पेनठाना के तह में पाया गया, परंतु अंग्रेज उसे लाख कोशिशों के बावजूद खोलने में असफल रहे। समय के साथ ही इस सुरंग के मुख मलबे में दब गया। कंकालीन दाई का कपाट साल में एक बार उन्दोमान जोत जवारा पाबुन चैतरई में खुलता है।
बारह एकड़ में बूढ़ातालाब की खुदाई में लगे छ: माह
महाराजा रायसिह जगत सिक्स पेन , सारूगपेन छ: देवधारी थे। उन्हीं देवों को समर्पित करते हुए इसकी खुदाई छ: में माह करवाई।
इन देवों के गोण्डी में नाम इस प्रकार हैं-
1- अहे ओदालपेन
2-महे ओदालपेन
3-अमाई ओदालपेन
4-टिपाई ओदालपेन
5-धंदे कोसार ओदालपेन
6-कोईन्दो ओदालपेन
छग में इन्हें जाना जाता है-
1- जुगा भादरादेव
2- लाड़िका देव
3-उदयसिता देव
4- भादरालिंगा देव
5-सोमतुला देव
6-पिण्डी तुला देव
12 एकड़ जमीन में खुदवाया गया ये भी अपने आप में रहस्य है। गोण्डवाना जनजातीय दर्शन में देखें तो 12 ग्रहों की मान्यता है। 12 राशि भी होती है। प्रकृति के शुभांक 750 अंकों का योग 7+5+0=12 है। कोयापुनेमी व्यवस्था के जनक बाबा पहॉदीपारी कुपार लिगो ने कोया पुनेमी लोगों को 12 सगा घटकों में विभाजित किया था। इसी के आधार पर 12 महीनों की संकल्पना की थी, जो इस प्रकार है-
1-ऊदोमान
2-चिंदोमान
3-कादोमान
4-नालोमान
5-सयोमान
6-सारोमान
7-येरामान
8-अरोमान
9-नरोमान
10-पदोमान
11-पादूमान
12-पांडामान
6 माह और 12एकड़ में तालाब निर्माण गोण्डवाना के एक बहुत बड़े रहस्य दर्शन की ओर इशारा करता है, जो गहन अध्ययन का विषय है।
जहां-जहां गोन्ड राजाओं का राज्य था, ताल तलैया बहुतायत संख्या में देखने को मिलता है।
गोन्डवाना जनजातियों का गौरवशाली इतिहास रहा है, इसे सहेजने संवारने की जवाबदेही हमारी है।
आलेख…………
अध्येता दुष्यंत उइके
भूमका बड़ादेव शक्तिपीठ- पाली जिला कोरबा एवं भूमका सदस्य बूढा देव तालाब रायपुर छग
सुर्वेय सेवा 750

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