रायपुर,एजेंसी। ।छत्तीसगढ़ के कथित नान (नागरिक आपूर्ति निगम) घोटाले में ED ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। घोटाले में आरोपी रिटायर्ड IAS अफसर अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला जमानत देने वाले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जज के संपर्क में थे।
दरअसल, ED ने 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। उसमें कोर्ट को यह जानकारी दी गई है। हालांकि हलफनामा में जज का नाम नहीं है, लेकिन वॉट्सऐप चैट डिटेल से उनका नाम पता चलता है।
ED का दावा है कि, दोनों आरोपी अग्रिम जमानत मामले में जज के भाई (अजय सिंह) के जरिए संपर्क में थे। दोनों आरोपियों को अक्टूबर 2019 को जमानत दी गई। तब जज के भाई को मुख्य सचिव के पद से हटाकर योजना आयोग का उपाध्यक्ष बना दिया गया था।
जज की बेटी-दामाद का बायोडाटा आरोपी को भेजा
ED ने बताया कि 31 जुलाई 2019 और 11 अगस्त 2019 के कई वॉट्सऐप चैट मिले हैं। इसे सुप्रीम कोर्ट से शेयर किया गया है। बताया गया है कि इन चैट से पता चला है कि सतीश चंद्र वर्मा के जरिए हाईकोर्ट जज की बेटी और दामाद का बायोडाटा तत्कालीन IAS अफसर अनिल कुमार टुटेजा को भेजा गया था।
दो साल पहले भी सालिसिटर जनरल ने उठाया था मामला
करीब 2 साल पहले 2022 में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसे मुद्दे को उठाया था। तब उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए कहा कि उनके एक कथित करीबी सहयोगी की वॉट्सऐप चैट से पता चला है कि नान घोटाला मामले के कुछ आरोपियों को जमानत मंजूर करने से दो दिन पहले मुख्यमंत्री एक न्यायाधीश से मिले थे। ये जज बिलासपुर हाईकोर्ट से संबंधित बताए जा रहे हैं।
इसके बाद बघेल ने इसे अत्यंत दुर्भाग्यजनक बताया। उन्होंने कहा था कि, सालिसिटर जनरल जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर बैठा व्यक्ति राजनीतिक उद्देश्यों से झूठे और शरारत पूर्ण आरोप लगा रहा है। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैंने कभी किसी जज से मिलकर किसी भी अभियुक्त के लिए किसी भी प्रकार का फेवर करने का अनुरोध नहीं किया। यह मेरी राजनीतिक छवि खराब करने एवं न्यायपालिका को दबाव में लाने का षड्यंत्र है।
सरकार बदली तो जांच अधिकारी ही नप गए
2018 के विधानसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ में सत्ता बदल गई। 17 दिसंबर 2018 को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उसके कुछ ही दिनों बाद नान घोटाले की जांच के लिए एक SIT का गठन किया गया। इस दौरान सामने आया कि नान घोटाले की जांच के दौरान ACB के मुखिया मुकेश गुप्ता और एसपी रजनेश सिंह ने फर्जी दस्तावेज बनाए। अवैध रूप से अफसरों-नेताओं के फोन टेप किए गए।
इस आरोप के आधार पर सरकार ने मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह को निलंबित कर दिया था। उनके खिलाफ FIR दर्ज हुई। तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक एसआईटी के खिलाफ कोर्ट गए और स्टे ले आए। मुकेश गुप्ता ने सर्वोच्च न्यायालय से कार्रवाई पर स्टे लगवाने में कामयाब हो गए। उनके खिलाफ राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में केस किया है।
मनी लाॉड्रिंग को आधार बनाकर घुसी ED
छत्तीसगढ़ में सरकार बदलने के बाद जनवरी 2019 में नान घोटाले में मनी लॉड्रिंग के आधार पर पहला केस दर्ज किया। बाद में आयकर विभाग ने राज्य सरकार के कुछ अफसरों, यहां के कारोबारियों और ठेकेदारों के ठिकानों पर छापा मारा। बड़ी संख्या में कैश, दस्तावेज बरामद हुए।
उसी में एक वॉट्सऐप चैट भी सामने आई, जिसमें राज्य सरकार के कुछ अधिकारियों और उच्च न्यायालय के एक न्यायिक अधिकारी की नान घोटाला मामले में कथित बातचीत दर्ज है। ED इस चैट को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। वहां कोर्ट ने उसे भी पार्टी बनने को कहा। बाद में ED भी एक पक्षकार बनी।